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________________ ६५० कातन्त्रव्याकरणम् १३९३. अनपादानेऽन्चेः [४।६।१०८] [सूत्रार्थ) अपादान से भिन्न अर्थ में वर्तमान ‘अन्च्' धातु से परवर्ती निष्ठातकार को नकारादेश होता है।।१३९३।। [दु० वृ०] अनपादाने वर्तमानाद् अन्चेर्निष्ठातकारस्य नकारो भवति। समक्नः, समनवान्। संसक्त इत्यर्थः। अनपादान इति किम्? उदक्तमुदकम्। कूपादुद्धृतमित्यर्थः। व्यक्तमिति अन्जे रूपम्। अञ्चितः, अञ्चितवान् इतीटा व्यवधानात्। पूजायामञ्चतेरिडभावो नलोपश्च नेष्यते।।१३९३। [वि०प०] अन०। व्यक्तमिति। अन्चिरिह प्रकाशने वर्तते, अन्चेस्तु प्रकाशने व्यक्तमिति नत्वं नाभिधीयते।। १३९३। [क० त०] अनपादाने०। अनपादाने इति विषयसप्तमीयम्, अन्यद् उदक्तमुदकं कूपादिति प्रत्यदाहतम्। पञ्ज्यामन्यस्त्विति। प्रकाशने क्तो न विधीयते इत्यर्थः। कस्मान वक्तव्यमित्याह- टीकायामञ्जर्विज्ञापनादिति।।१३९३। [समीक्षा) 'समक्नः, समक्नवान्', इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में नकारादेश किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- “अञ्चोऽनपादाने' (अ०८।२।४८)। अत: उभयत्र समानता ही है। [रूपसिद्धि १-२. समक्नः, समक्नवान्। सम्+अन्च्+क्त, क्तवन्तु-सि। 'सम्' उपसर्गपूर्वक 'अन्चु गतिपूजनयोः' (१।४८) धातु से क्त-क्तवन्तु प्रत्यय, नलोप, जकार को गकार, गकार को ककार, प्रकृत सूत्र से तकार को नकार तथा विभक्तिकार्य।।१३९३। १३९४. अविजिगीषायां दिवः [४।६।१०९] [सूत्रार्थ] विजिगीषा अर्थ से भिन्न अर्थ में वर्तमान ‘दिव' धातु से परवर्ती निष्ठातकार को नकारादेश होता है।।१३९४। [दु०वृ०] अविजिगीषायां वर्तमानाद् दिवो निष्ठातकारस्य नकारो भवति। आयूनः, आघूनवान्। अविजिगीषायामिति किम्? द्यूतं वर्तते। विजिगीषया पक्षपात: क्रियते। सिनोते: कर्मकर्तरि ग्रासे वक्तव्यम्। सिनो ग्रासः। स्वयमेव बद्ध इत्यर्थः।।१३९४। [वि०प०] अवि०। “च्छ्वोः शूटौ पञ्चमे च" (४।१।५६) इति वकारस्योट सिनोतेरिति वक्तव्यम्। व्याख्येयमभिधानादित्यर्थः।।१३९४।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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