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________________ कातन्त्रव्याकरणम ६२२ [वि०प०] उदनुबन्धः। क्लिशेरचेति! 'क्लिश उपतापे' (३।१०४) इत्यस्य ग्रहणं न तु 'क्लिशू विबाधने' (८1८२इति। अस्योदनुबन्धत्वाद् विकल्य: सिद्ध एवंति। पुव इति। पूञ्पूङोस्तु "न ,युवर्णवृताम्' (४।६।७९) इत्यादिना नित्यमिटप्रतिषधे प्राप्ते वचनम् इत्यर्थः। इह पूङ इति ङानुबन्धो नाद्रियते।।१३६९। [क० त०] उद०। पोपवित्वेति। न चानेन विकल्पाभावेऽपि "न ,युवर्ण०'' (४।६।७९) इत्यादिना नित्यं निषेधः कथं न स्यादिति वाच्यम्, न ,युवर्णवृतां यः कानुबन्ध इति सम्बन्धात्। अयं तु चेक्रीयितलुगन्तस्य विकल्प इति विकल्पप्रकरणत्वादनेनैव विकल्पः, न तु उदनुबन्धत्वं प्रति इडागम इत्यत्रेति बोध्यम्।। १३६९। [समीक्षा) 'शान्त्वा, शमित्वा' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ दोनों ही व्याकरणों में विकल्प से इट् आगम किया गया है। एतदर्थ पाणिनि के तीन सूत्र हैं- “क्लिश: क्त्वानिष्ठयोः पूङश्च, उदितो वा'' (अ० ७।२।५०, ५१, ५६)। इस प्रकार पाणिनि का सूत्रत्रयप्रयुक्त गौरव असन्दिग्धरूप में कहा जा सकता है। [विशेष वचन] १. ऊदनुबन्धस्य क्लिशेश्च प्राप्ते विभाषा, पुवः कानुबन्धेऽप्राप्त एव (दु०१०)। २. चेक्रीयितलुगन्तस्य चेति चूर्णीकारमतं भाषायामपि (दु०टी०)। ३. वाऽधिकारः स्पष्टार्थ एव (दु०टी०)। [रूपसिद्धि १-३. शमित्वा, शान्त्वा। शमु+इट्+क्त्वा+सि। पवित्वा, पूत्वा। पू+इट् + क्त्वा सि। क्लिशित्वा, क्लिष्टवा। क्लिश्+इट्+क्त्वा+सि। 'शम्, पू, क्लिश्' धातुओं से क्त्वा प्रत्यय, 'क्' अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से वैकल्पिक इडागम तथा विभक्तिकार्य। इडागम के अभावपक्ष में 'शान्त्वा, पूत्वा, क्लिष्ट्वा' रूप सिद्ध होते हैं।।१३६९। १३७०. व्रश्चोरिट् [४।६।८५] [सूत्रार्थ क्त्वा प्रत्यय के परे रहते ‘जुव्रश्चू' धातुओं से इट् का आगम होता है।।१३७०। [दु०१०] जृव्रश्चिभ्यां क्त्वि इड् भवति। जरीत्वा, जरित्वा। व्रश्चित्वा। लाक्षणिकत्वाद् जृष्– जीा। व्रश्चेर्वचनानित्यमिडिति पुनरिड्ग्रहणम् उत्तरत्र वा-निवृत्त्यर्थम्।।१३७०।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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