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कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा]
'उदपेषम्, तैलपेषम्' इत्यादि शब्दरूपों के साधनार्थ कातन्त्रकार ने णम् प्रत्यय तथा पाणिनि ने ‘णमुल्' प्रत्यय किया है। पाणिनि का सूत्र है- 'स्नेहने पिष:'' (अ०३।४।३८)। अत: प्राय: उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. उदपेषं पिनष्टि। उदक-उद-पिष्- णम्-अम्। उदकेन पिनष्टि। 'उदक' शब्द के उपपद में रहने पर 'पिष्' धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय, लघूपधगुण तथा विभक्तिकार्य।
२-३. तैलपेषम्। तैल-पिष्- णम्-अम्। घृतपेषम्। घृत-पिष्- णम्-सि। तैल-वृत शब्दों के उपपद में रहने पर 'पिष्' धातु से ‘णम्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।। १३०९।
१३१०. बन्धोऽधिकरणे च [४।६।२५]
[सूत्रार्थ
अधिकरण के उपपद में रहने पर 'बन्ध बन्धने' (८।३२) धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।।१३१०।
[दु०वृ०]
अधिकरणे उपपदे बध्नातर्णम् भवति। चक्रे बन्ध: चक्रवन्धं वन्धः, गुप्निबन्धं बन्ध:, हस्तबन्धं बन्धः।। १३१०।
[समीक्षा]
'चक्रबन्धम्, मुष्टिबन्धम्' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने णम् तथा पाणिनि ने ‘णमल' प्रत्यय किया है। पाणिनि का सत्र है- “अधिकरणे बन्धः'' (अ० ३।४।४१)। अतः प्राय: उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. चक्रबन्थं बन्धः। चक्र-बन्ध+ णम्+सि। 'चक्र' शब्द के उपपद में रहने पर 'बन्ध बन्धने' (८।३२) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णम्' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।
२-३. गुप्तिबन्धम्। गुप्ति+बन्धणम्+सि। हस्तबन्धम्। हस्त-बन्ध+णम्-सि। 'गुप्ति -हस्त' शब्दों के उपपद में रहने पर ‘बन्ध' धातु से णम् प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।।१३१०।
१३११. सज्ञायां च [४।६।२६] [सूत्रार्थ
अधिकरण तथा अनधिकरण कारक के उपपद में रहने पर 'बन्ध्' धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।। १३११।