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________________ ४९८ कातन्त्रव्याकरणम् [रूपसिद्धि] १-२. अकरणिः। नञ् - क - अनि - सि। अजीवनिः। नत्र - जीव - अनि - सि। 'नञ्' के उपपद में रहने पर 'कृ-जीव्' धातुओं से प्रकृत सूत्र द्वारा 'अनि' प्रत्यय, ऋकार को गुण, नञ्यटित नकार का लोप तथा विभक्तिकार्य।।१२६३। १२६४. कृत्ययुटोऽन्यत्रापि [४।५।९२] [सूत्रार्थ] कृत्यसंज्ञक 'तव्य - अनीय - क्यप् - घ्यण-य' तथा युट् प्रत्यय विहित अर्थों से भिन्न अर्थों में भी प्रयोगानुसार उपपत्र होते हैं।।१२६४।। [दु० वृ०] कृत्याः युट् च यस्मिन्नर्थे विहितास्ततोऽन्यत्रापि भवन्ति लक्ष्यतः। स्नानीयं चूर्णम्, दानीयो ब्राह्मणः, समावर्तनीयो गुरु:, प्रवचनीय उपाध्यायः। करणादिषु भवन्त्यमी। भव्यगेयप्रवचनीयोपस्थानीयजन्याप्लाव्यापात्याः कर्तर्यपि भवन्ति। आपूर्वयोः प्लुङ्पद्योय॑णपि। राजभिर्भुज्यन्ते राजभोजनाः शालयः। एवं राजाच्छादनानि वासांसि। 'अवसेवनम्, अवसेचनम्, अवश्रवणम् , दानम् , मोचनम् ' एते कर्मणि च। 'प्रस्कन्दनम्, प्रपतनम् ' इत्यपादाने। अपिशब्दो बहुलार्थ इति ‘ष्ठिवुसिव्योर्दीर्घश्च वा' - निष्ठीवनम्, निष्ठेवनम् । निषीवणम् , निषेवणम् । चकारात् – करोतीति कारणम् ।।१२६४। [वि० प०] कृत्य०। करणादिष्विति। स्नात्यनेन, दीयतेऽस्मै। समावर्ततेऽस्मात् , प्रवक्त्यस्मिन्निति यथाक्रमं चत्वार्युदाहरणानि। तव्येत्यादि। भवति गायतीत्यादि वाक्यम् । कर्तर्यपीति। न केवलं भावकर्मणोरित्यपेरर्थः।।१२६४। [क० च.] कृत्य०। प्लुङ्पद्योरिति। ‘पद गतौ' (३।१०७)।।१२६४। [समीक्षा] कातन्त्रकार ने 'तव्य, अनीय, क्यप,घ्यण , य' इन पाँच प्रत्ययों की ‘कृत्य' संज्ञा की है। पाणिनीय व्याकरण में 'तव्यत् , तव्य, अनीयर्, यत् , क्यप् , ण्यत्, केलिमर' ये सात प्रत्यय कृत्यसंज्ञक माने गए हैं। पाणिनीय ल्युट के लिए कातन्त्र में युट् प्रत्यय है। ये सभी प्रत्यय दोनों ही व्याकरणों में विहित अर्थों से भिन्न अर्थों में भी किए जाते हैं। पाणिनि का सूत्र है -- “कृत्यल्युटो बहुलम् ' (अ०३।३।११३)। 'बहुल' के चार अर्थ माने गए हैं – १. क्वचित् प्रवृत्ति, २. क्वचित् अप्रवृत्ति, ३. क्वचिद् विभाषा, ४. क्वचिद् अन्यदेव। चतुर्थ अर्थ यहाँ ग्राह्य है। अत: उभयत्र समानता ही है।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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