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________________ ४६० कातन्त्रव्याकरणम् [क० च० ] स्वर०। वृदृग्रहणं किमर्थम्, स्वरान्तद्वारेणैवासिद्धेः ? सत्यम्, नियमार्थमित्याह - वृद्रोरेवेति। भयमिति। घञ्वाधकोऽयमनपुंसकस्यैव युज्यते कथं भयमित्यत्र नपुंसकेऽलिति । न च वासरूपन्यायादिति वाच्यम्, क्तयुट्तुम्खलर्थेषु वासरूपविधिर्नास्तीति उक्तमेवेति पूर्वपक्षार्थ इति हेमः || १२१३। [समीक्षा] 'वरः, दरः, गमः, ग्रहः' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही आचार्य अल् प्रत्यय का विधान करते हैं। पाणिनि का सूत्र है- " ग्रहवृदृनिश्चिगमश्च" (अ०३।३।५८ ) । परन्तु 'क्षयः, लव:' आदि शब्दों की सिद्धि कातन्त्रकार ने 'अल्' प्रत्यय से की है, जब कि पाणिनि ने तदर्थ 'अच्- अप्' प्रत्ययों का विधान किया है “एरच्,ऋदोरप्” (अ०३।३।५६,५७)। इस प्रकार तीन प्रत्ययों के विधान से पाणिनीय गौरव स्पष्ट है। [विशेष वचन ] १. नियमार्थमित्याह-वृद्रोरेवेति ( क० च० ) । २. पूर्वपक्षार्थ इति हेम: (क० च० ) । [रूपसिद्धि] - १-४. क्षयः । क्षि + अल् सि। क्रयः । क्री + अल् + सि। क्षवः । क्षु अल् + सि। लवः। लू + अल् + सि। 'क्षि- क्री-क्षु-लू' इन स्वरान्त धातुओं से अल् प्रत्यय, गुण, 'अय् - अव्' आदेश तथा विभक्तिकार्य । ५-६. वरः। वृ + अल् + सि। दरः । दृ + अल् + सि। 'वृ - दृ' धातुओं से 'अल्' प्रत्यय, गुण तथा विभक्तिकार्य । ७-८. गमः। गम् + अल् + सि। ग्रहः । ग्रह + अल् + सि। 'गम् -ग्रह्' धातुओं से 'अल्' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य ।। १२१३। १२१४. उपसर्गेऽदेः [४।५।४२] [सूत्रार्थ] उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'अद भक्षणे' (२।१) धातु से 'अल्' प्रत्यय होता है ।। १२१४। [दु० वृ० ] उपसर्ग उपपदेऽदेरल् भवति । प्रघसः विघसः । " घञलोर्घस्लृ : " ( ४।१।८३)। उपसर्ग इति किम् ? घासः ।। १२१४। " [समीक्षा] ‘प्रघस:, विघसः' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने 'अल्' तथा पाणिनि ने ‘अप्' प्रत्यय किया है। पाणिनि का सूत्र है - " उपसर्गेऽदः” (अ०३।३।५९) । अनुबन्धों की भिन्नता को यदि छोड़ दिया जाय तो उभयत्र प्रायः समानता ही कही जाएगी।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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