SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थे कृदध्याये पञ्चमो घञादिपादः [समीक्षा] 'विशायः, उपशायः' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'घञ्' प्रत्यय का विधान किया गया है। पाणिनि का सूत्र है – “व्युपयोः शेतेः पर्याये" (अ० ३।३।३९)। अत: उभयत्र समानता ही है। [रूपसिद्धि] १. तव राजविशायः। वि + शीङ् + घञ् + सि। 'वि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'शीङ् शये' (२।५५) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘घञ्' प्रत्यय, 'घ् -ज्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, इज्वद्भाव, धातुघटित ईकार की वृद्धि, आय आदेश तथा विभक्तिकार्य। २. तव राजोपशायः। उप + शीङ् + घञ् + सि। 'उप' उपसर्गपूर्वक ‘शीङ शये' धातु से 'घञ् ' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।।१२१०। १२११. अभिविधौ भाव इनुण [४।५।३९] [सूत्रार्थ] अभिविधि अर्थ में धातु से इनुण प्रत्यय भाववाच्य में होता है।।१२११। [दु० वृ०] अभिविधौ गम्यमाने धातो वे इनुण भवति। सांकोटिनम् , सांराविणं वर्तते। क्रिययैवाभिव्याप्तिः, इनुणन्तात् स्वार्थेऽण् । युडपि दृश्यते – सङ्कुटनम् ।।१२११। [दु० टी०] अभि०। क्रिययैवाभिव्याप्तिरिति, न तु गुणद्रव्याभ्यां क्रियायाः श्रुतत्वाद् वासरूपतया न क्तो युट् च दृश्यते-संकुटनम् । इनुण इकार: उच्चारणार्थः।।१२११। [वि० प०] अभि०। अभिविधिरभिव्याप्तिः। साकल्येन क्रियासम्बन्ध इत्याह-क्रिययैवेति। एवकारेण गुणादिनिरास:, तस्य धात्वर्थत्वाभावात् श्रुतत्वाच्च क्रियाया इति। वासरूपतया क्तो न दृश्यते, युट् तु दृश्यते - संकुटनं वर्तते इति।।१२११। [क० च०] अभि०। भावे इनुण्णित्येव पाठः। "भावे" (४।५।३) इति सूत्रे विसन्धिनिर्देशो दुष्ट एव, अयादीनामित्यत्र तद्गुणसंविज्ञानो बहुव्रीहिआपकेन कुलचन्द्रदर्शितत्वात् ॥१२११। [समीक्षा] 'सांकोटिनम् , सांराविणम् ' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'इनुण' प्रत्यय किया गया है। पाणिनि का सूत्र है – “अभिविधौ भावे इनुण्' (अ० ३।३।४४)। अत: उभयत्र समानता ही है।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy