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________________ ४५२ कातन्त्रव्याकरणम [समीक्षा 'आराव:, आप्लाव:' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'घञ्' प्रत्यय किया गया है। पाणिनि का सूत्र है—“विभाषा आङि रुप्लवोः' (अ०३।३।५०)। अत: उभयत्र पूर्ण समानता ही है। [रूपसिद्धि] १-२. आरावः, आरवः। आङ् + रु + घञ् + सि। आप्लावः, आप्लवः। आङ् + प्लु + घञ् + सि। ‘आङ्' उपसर्गपूर्वक ‘रु-प्लु' धातुओं से ‘घञ्' प्रत्यय, इज्वद्भाव, वृद्धि, आव् - आदेश तथा विभक्तिकार्य। घञ् प्रत्यय के अभाव में अल् प्रत्यय होने पर 'आरवः, आप्लव:' शब्दरूप।।१२०४। १२०५. परौ भुवोऽवज्ञाने [४।५।३३] [सूत्रार्थ अवज्ञान अर्थ में 'परि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'भू' धातु से 'घञ्' प्रत्यय विकल्प से होता है।।१२०५। [दु० वृ०] परावुपपदे भवतेर्घञ् भवति वा अवज्ञानेऽर्थे। परिभावः, परिभवः। पराविति किम्? सम्भवः। अवज्ञान इति किम् ? सर्वतो भवनं परिभवः।।१२०५। [समीक्षा] 'परिभावः, परिभव:' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही आचार्यों ने वैकल्पिक 'घञ्' प्रत्यय का विधान किया है। पाणिनि का सूत्र है-“परौ भुवोऽवज्ञाने" (अ०३।३।५५)। अत: उभयत्र समानता ही है। [रूपसिद्धि] १. परिभावः, परिभवः। परि + भू + घञ् + सि। 'परि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'भू सत्तायाम्' (१।१) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'घञ्' प्रत्यय, इज्वद्भाव, धातुघटित ऊकार की वृद्धि, आव्-आदेश तथा विभक्तिकार्य। 'घञ्' प्रत्यय के अभाव में अल् प्रत्यय होने पर 'परिभवः' शब्दरूप।।१२०५। १२०६. चेस्तु हस्तादाने [४।५।३४] [सूत्रार्थ] हाथ द्वारा ग्रहण करने के अर्थ में 'चिञ् चयने' (४५) धातु से 'घ' प्रत्यय होता है।।१२०६। [दु० वृ०] हस्तादानविषये चिनोतेर्घञ् भवति। पुष्पप्रचाय:। हस्तादानग्रहणं प्रत्यासनोपलक्षणम्,
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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