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________________ ४४५ चतुर्थे कृदध्याये पञ्चमो घञादिपादः ४४५ ११९३. नौ वृञः [४।५।२१] [सूत्रार्थ धान्य - विषय के विवक्षित होने तथा 'नि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'वृञ् वरणे' (४।८) धातु से ‘घञ्' प्रत्यय होता है।।११९३। [दु० वृ०] नावुपपदे वृञो धातोर्घञ् भवति धान्यविषये। नीवारा व्रीहयः। ह्रस्वस्य दीर्घता।। ११९३। [दु० टी०] नौ०। पूर्वसूत्रे विषयसप्तमी इहाभिधेयसप्तमीत्यभिधानादवसीयते। निवियन्त इति नीवाराः। केचिद् व्रीहिविशेषा उच्यन्ते न सर्वधान्यानि। धान्याभिधान एव निक्रियतेऽसाविति निवरा कन्या। स्वभावादलन्तमपि स्त्रियां वर्तते।।११९३। [वि० प०] नौ०। विशिष्टा एव व्रीहयो नीवारा उच्यन्ते न तु सर्वे। धान्यादन्यत्र न भवति। निवियते इति निवरा कन्या। स्वभावादलन्तस्यापि स्त्रियां वृत्तिः।।११९३। [क० च०] नौ०। नीवारा उडीति यस्य ख्यातिः।।११९३। [समीक्षा 'नीवारा:' शब्द की सिद्धि दोनों ही व्याकरणों में 'घञ्' प्रत्यय द्वारा की गई है। पाणिनि का सूत्र है – “नौ वृ धान्ये' (अ०३।३।४८)। अत: उभयत्र पूर्ण समानता ही है। [रूपसिद्धि] १. नीवारा व्रीहयः। नि + वृञ् + घञ् + जस् । निद्रियन्ते। 'नि' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'वृञ् वरणे' (४।८) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘घञ्' प्रत्यय, ‘घ - ज्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, इज्वद्भाव्, वृद्धि, उपसर्ग को दीर्घ तथा विभक्तिकार्य।।११९३। ११९४. उदि श्रिपुवोः [४।५।२२] [सूत्रार्थ] 'उत्' उपसर्ग के उपपद में रहने पर 'श्रिञ् सेवायाम्' (१।६०४) तथा 'पू पवने' (१।४६५) धातु से 'घञ्' प्रत्यय होता है।।११९४। [दु० वृ०] उद्युपपदे श्रिपूभ्यां घञ् भवति। उच्छ्राय:, उत्पावः। कथम् उच्छ्रयः? अप्यधिकाराद् वा।।११९४।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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