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कातन्त्रव्याकरणम्
[क० च०]
उन्यो०। गिर इति। 'गृ निगरणे' (५।२२) इत्यस्य तिब्लोपं कृत्वा निर्देशः। तेन गृशब्देऽस्य उद्गरः इति भवति।।११९१।
[समीक्षा]
'उद्गारः, निगार:' शब्दों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'घञ्' प्रत्यय किया गया है। पाणिनि का सूत्र है- "उन्योHः'' (अ०३।३।२९)। अतः उभयत्र समानता ही है।।
[रूपसिद्धि]
१-२. उद्गारः। उद् + गृ + घञ् + सि। निगारः। नि + गृ + घञ् - सि। 'उद् - नि' के उपपद में रहने पर ‘ग निगरणे, ग शब्दे' (५।२२;८।२२) धात् से 'घञ्' प्रत्यय, इज्वद्भाव, ऋकार की वृद्धि तथा विभक्तिकार्य।।११९१।
११९२. किरो धान्ये [४।५।२०] [सूत्रार्थ]
धान्यविषयक अर्थ की विवक्षा में 'उद् - नि' के उपपद में रहने पर 'कृ विक्षपे' (५।२१) धातु से 'घञ्' प्रत्यय होता है।।११९२।
[दु० वृ०]
उन्योरुपपदयोर्धान्यविषये वर्तमानात किरतेर्घञ भवति। उत्कारो धान्यस्य, निकारो धान्यस्य। धान्य इति किम् ? पुष्पोत्करः, पुष्पनिकरः। किरतेरिति किम् ? 'कृञ् हिंसायाम्' (८।११)- धान्यनिकरः।।११९२।
[वि० प०]
किरो०। किर इति। 'कृ विक्षेपे' (५।२१) इत्यस्य सविकरणस्य तिब्लोपं कृत्वा निर्देश: सूत्रत्वादित्याह-किरतेरिति। उत्कारो धान्यस्येति। विक्षेपो धान्यस्येत्यर्थः। विषयसप्तमीयमुत्तरत्र। अभिधेयसप्तम्येवाभिधीयते।।११९२।
[समीक्षा
'उत्कारः, निकार:' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही आचार्यों ने 'घञ्' प्रत्यय का विधान किया है। पाणिनि का सूत्र है- “कृ धान्ये' (अ०३।३।३०)। अत: उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि
१. उत्कारो धान्यस्य। उद् + कृ + घञ् + सि। निकारो धान्यस्य। नि + कृ + घञ् + सि। 'उद् -नि' के उपपद में रहने पर 'कृ विक्षेपे' (५।२१) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘घञ्' प्रत्यय, इज्वद्भाव, वृद्धि तथा विभक्तिकार्य।।११९२।