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________________ चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये चतुर्थः क्वन्सुपादः ३९५ ११४९. गमस्त च [४।४।४९] [सूत्रार्थ] ताच्छील्य आदि अर्थों में 'गम्ल गतौ' (१:२७९) धातु से 'क्वरप् ' प्रत्यय तथा मकार के स्थान में तकार आदेश होता है ।।११४९ ।। [दु० वृ०] गमः क्वरप् भवति तच्छीलादिषु तकारश्चान्तादेशः । गत्वरः । गत्वरी ।।११४९। [क० च०] गम०। सविभक्तिरेव प्रत्ययनिर्देशः सर्वत्र दृश्यते, तदभावेऽत्रादेश एव कल्प्यते। "द्युतिगमोझै च" (४।४।५८) इति क्विपि प्राप्ते "शृकम०" (४।४।३४) इत्यादिना उकञि प्राप्ते चेयमारभ्यते ।। ११४९ । [समीक्षा] 'गत्वरः, गत्वरी' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने विधिसूत्र द्वारा तथा पाणिनि ने निपातनसूत्र द्वारा क्वरप् प्रत्यय किया है । पाणिनि का सूत्र है-“ गत्वरश्च" (अ० ३।२।१६४)। अत: प्राय: उभयत्र समानता ही कही जायेगी । [रूपसिद्धि] १. गत्वरः, गत्वरी। गम् + क्वरप् + सि । 'गम्ल गतौ' (१।२७९) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'क्वरप्' प्रत्यय, 'क् - प् ' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, मकार को तकारादेश तथा विभक्तिकार्य । स्त्रीलिङ्ग में 'ई' प्रत्यय'- गत्वरी ॥ ११४९ । ११५०. दीपिकम्प्यजसिहिंसिकमिस्मिनमा रः [४।४।५०] [सूत्रार्थ] ताच्छील्य आदि अर्थों में ‘दीप् - कम्प्' आदि धातुओं से 'र' प्रत्यय होता है ।।११५०। [दु० वृ०] एषां रो भवति तच्छीलादिषु। दीप्रः, कम्प्रः। नञ्पूर्वो ‘जसु मोक्षणे' (३।५१)अजस्रः। हिंस्रः, कम्रः, स्मेरः, नम्रः। युरपि दृश्यते-कम्पन:,कमनः।।११५०। [समीक्षा] 'स्मेर:, नम्रः' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही आचायों ने 'र' प्रत्यय किया है । पाणिनि का सूत्र है- “नमिकम्पिस्म्यजसकमहिंसदीपो र:' (अ० ३।२।१६८)। अत: उभयत्र समानता ही है।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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