SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५ विषयानुक्रमणी प्रयोग की प्रामाणिकता, सम्प्रसारण, सम्प्रसारण का निषेध, प्राप्तिपूर्वक ही निषेध की प्रवृत्ति, दीर्घादेश, चेक्रीयितलुगन्त की भाषा में भी मान्यता, श्-ऊट आदेश', 'छ्-व्' का लोप, लोक में धूर्त शब्द की विशिष्ट अभिधेयता, सूत्र की विचित्र कृति, दण्डक पाठ, पञ्चम वर्ण का लोप, मलोप, नलोप, निपातनविधि, नैयासिकमत, सूत्रकार के मत की न्यायसिद्धता, आकारादेश, असाम्प्रदायिक हेयता, इकारादेश, पाठगौरव, 'हि' आदेश, तिप्निर्देश की सुखार्थता, उकारादेश, 'दत्' आदेश, तकारादेश, शाकटायन का मत, 'जग्धि' आदेश, 'घस्ल' आदेश, निष्ठा संज्ञा, शब्दों की नित्यता, समीक्षा में निष्ठाविषयक विशेष वक्तव्य]। द्वितीयो धातुपादः १४२-२२५ [धातु का अधिकार, इति शब्द का द्वैविध्य, उपपदसञ्ज्ञा, क्रिया के उपकारी वाक्यार्थ-पदार्थ, नित्य और कार्य शब्द, समासविधि, नित्य समास, लोकव्यवहार से निपात आदि का परिज्ञान, प्रवाहनित्यता, आभ्यन्तर-बाह्य भेद से द्विविध भाव, समास-प्राग्भाव का निषेध, गरीयसी प्रतिपत्ति, सागरहेम आदि के मत, कृत् संज्ञा तथा उसका अधिकार, स्वार्थ-परार्थ भेद से दो प्रकार का अधिकार, समीक्षा में कृत् को प्राचीनता आदि। तव्यअनीय प्रत्यय, रूढिवश दीर्घादि- विधान, 'य' प्रत्यय, बुद्धि तथा वचन से शब्दों का संस्कार, वररुचिमत की असाधुता, इकारादेश, निपातनविधि, ‘वर्या' शब्द की नित्य स्त्रीलिङ्गता, निपातन से तीन कार्य, निपातनविधि, प्रतिपत्तिगौरव, क्यप् प्रत्यय, प्रक्रियागौरव, सुखप्रतिपत्ति के लिये योगविभाग, भार्या शब्द की सिद्धि, अपौराणिक पक्ष, निपातनविधि, घ्यण प्रत्यय, वररुचि-दुर्ग के मत, सौत्र धातु, अपौराणिक पाठ, उपचारबल से विशिष्ट अर्थ, स्वरवद्भाव, तीन अग्नियाँ, निपातन से स्त्रीलिङ्गता, निपातन से सिद्धि, कृत्यसज्ञा, वुण् तथा तृच् प्रत्यय, पचादिग्रहण की बाधक बाधनार्थता, पचादिनामगण, 'यु' प्रत्यय, ‘णिन्' प्रत्यय, प्रतिपत्तिगौरव, श्रीपतिमत, 'क' प्रत्यय, 'ड' प्रत्यय, डकारानुबन्ध की योजना अन्त्यस्वरादि के लोपार्थ, 'श' प्रत्यय, वृत्तिकार का हृदय मन्दबुद्धि वालों के सुखावबोधार्थ, सौत्र धात, 'ण' प्रत्यय, सागर-हेम आदि आचार्यों के मत, व्यवस्थितविभाषा, अधिकार की इष्टविषयता, 'अक्' प्रत्यय, वुष् प्रत्यय, 'थक' प्रत्यय, ण्युट प्रत्यय, 'अक' प्रत्यय, पूर्व वैयाकरणों का अभिमत।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy