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कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा]
'दुःखापहः, तमोऽपहः' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ दोनों ही आचार्यों ने 'ड प्रत्यय का विधान किया है। पाणिनि का सूत्र है - "अपे क्लेशतमसोः" (अ० ३।२।५०) । अत: उभयत्र समानता ही है ।
[रूपसिद्धि]
१. क्लेशापहः। क्लेश + अप - हन् - ड - सि । क्लेशानि अपहन्ति । 'क्लेश' के उपपद में रहने पर 'अप' उपसर्गपूर्वक 'हन् हिंसागत्योः ' (२।४) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'ड' प्रत्यय, ‘ड्' अनुबन्ध के कारण 'अन्' भाग का लोप तथा विभक्तिकार्य ।
२. तमोऽपहः। तमस् + अप + हन् + ड - सि । तमोऽपहन्ति । 'तमस्' शब्द के उपपद में रहने पर 'अप' उपसर्गपूर्वक ‘हन्' धातु से 'ड' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।।१०५६।
१०५७. कुमारशीर्षयोर्णिन् [४।३।५२] [सूत्रार्थ
कर्म कारक में 'कुमार-शीर्ष' शब्दों के उपपद में रहने पर 'हन् हिंसागन्या: (२।४) धातु से ‘णिन्' प्रत्यय होता है ।।१०५७।
[दु० वृ०]
शिर:पर्याय: शीर्षशब्दः । कुमारशीर्षयोः कर्मणोरुपपदयोर्हन्तेर्णिन् भवति । कुमारघाती, शीर्षघाती ।।१०५७।
[वि० प०]
कुमार०। शिर इत्यादि। तथा च 'शीर्षोपहारादिभिरात्मनः स्वैः' इति प्रयोगः। शिरस: शीर्षादेश इति अन्ये। इज्वद्भावाद् घत्वादिकम्।।१०५७।
[समीक्षा]
'कुमारघाती, शीर्षघाती' प्रयोगों के सिद्धयर्थ दोनों ही आचार्यों ने 'णिन्' प्रत्यय का विधान किया है । पाणिनि का सूत्र है – “कुमारशीर्षयोर्णिनिः" (अ० ३।२।५१)। अत: उभयत्र समानता ही है ।
[रूपसिद्धि]
१. कुमारघाती। कुमार + हन् + णिन् + सि । कुमारं हन्ति। 'कुमार' शब्द के उपपद में रहने पर 'हन् हिंसागत्यो:' (२।४) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘णिन्' प्रत्यय, इज्वद्भाव के कारण 'हस्य हन्तेर्घिः'' (३।६।२८) से हकार को घकार. "अस्योपधाया