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________________ २६१ चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये तृतीयः कर्मादिपादः १०३७. नाडीकरमुष्टिपाणिनासिकासु ध्मश्च [४।३।३२] [सूत्रार्थ] 'नाडी - कर – मुष्टि – पाणि - नासिका' के उपपद में रहने पर 'ध्या शब्दाग्निसंयोगयोः, धेट पाने' (१।२६६, २६४) धातुओं से 'खश्' प्रत्यय होता है ।।१०३७। [दु० वृ०] एषु कर्मसूपपदेषु धमतेधेटश्च खश् भवति । नाडिन्धमः, नाडिन्धयः । करन्धम:, करन्धयः। मुष्टिन्धमः, मुष्टिन्धयः । पाणिन्धमः, पाणिन्धयः । नासिकन्धमः, नासिकन्धयः। शुनीस्तनघटीखरीवातेषु धमतेरित्येके । शुनिन्धम:, स्तनन्धम:, घटिन्धमः, खरिन्धम:, वातन्धमः ।।१०३७। [दु० टी०] नाडी० । करो ध्मायतेऽस्मिन् पथीत्यधिकरणेऽपि कर्तरीत्येव भवतीत्यविशेषेणोदाहरणं स्थाली पचतीति यथा । एवं पाणिन्धमः पन्था इति ।।१०३७। [वि० प०] नाडी० । नाडिन्धमादिषु पूर्ववद् ह्रस्वत्वं सर्वत्र मोऽन्तश्च, शानुबन्धे सार्वधातुकत्वादनि विकरणे ध्मो धमश्चेति ॥१०३७। [समीक्षा] 'नाडिन्धमः, नाडिन्धयः, नासिकन्धमः, नासिकन्धयः' आदि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों आचार्यों ने 'खश्' प्रत्यय का विधान किया है । पाणिनि के दो सूत्र हैं – “नासिकास्तनयोधेिटोः, नाडीमष्ट्योश्च'' (अ० ३।२।२९,३०) । पाणिनि की अपेक्षा कातन्त्रकार ने जो अधिक शब्दों का पाठ किया है, उससे कातन्त्र व्याकरण का वैशिष्ट्य ही सिद्ध होता है । [रूपसिद्धि १. नाडिन्धमः । नाडी + ध्मा + खश् + सि । नाडी धमति । 'नाडी' शब्द के उपपद में रहने पर 'ध्मा शब्दाग्निसंयोगयो:' (१।२६६) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'खश्' प्रत्यय, अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, “ध्मो धमश्च" (३।६।७२) से 'धम' आदेश, “दीर्घस्योपपदस्यानव्ययस्य०” (४।१।२०) से नाडीगत ईकार को ह्रस्व, "ह्रस्वारुषोर्मोऽन्तः'' (४।१।२२) से मकारागम तथा विभक्तिकार्य । २. नाडिन्धयः । नाडी + धेट + खश् + सि । नाडी धयति । 'नाडी' शब्द के उपपद में रहने पर 'धेट पाने' (१।२६४) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'खश्' प्रत्यय, अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, ह्रस्व, मकारागम, एकार को अयादेश तथा विभक्तिकार्य। ३-१०. करन्थमः । कर + ध्मा + खश् + सि । करन्धयः । कर + धेट +
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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