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________________ चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये तृतीयः कर्मादिपादः २५९ २५९ १०३५. एजेः खश् [४।३।३०] [सूत्रार्थ] कर्मकारक के उपपद में रहने पर 'एजि' धातु से 'खश्' प्रत्यय होता है ।।१०३५। [दु० वृ०] कर्मण्युपपदे एजयतेः खश् भवति । अङ्गमेजयः, जनमेजयः । खानुबन्धान्मोऽन्तः शानुबन्धे सार्वधातुकत्वाद् विकरणे इनो गुणः स्यात् ।।१०३५।। [दु० टी०] . एजेः । ‘एन कम्पने' (१९७०) इत्ययमिनन्त इह गृह्यते। कथमेतत् खश: शानुबन्धकत्वाद् विकरणे सतीनो लोपाभाव इति तथोत्तरार्थं शानुबन्धकरणं तदुत्तरमादौ कृतं व्याख्यानतो वेन्ग्रहणम् ।।१०३५। [समीक्षा 'अङ्गमेजयः, जनमेजयः' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'खश्' प्रत्यय का विधान किया गया है । पाणिनि का सूत्र है – “एजे: खश्" (अ० ३।२।२८)। इस प्रकार उभयत्र समानता ही है । [विशेष वचन] १. उत्तरार्थं शानुबन्धकरणम् (दु० टी०) । [रूपसिद्धि] १. अङ्गमेजयः । अङ्ग + एजि । खश् + सि । अङ्गमेजयति । 'अङ्ग' शब्द के उपपद में रहने पर इन्प्रत्ययान्त 'एन कम्पने' (१९७०) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा ‘खश्' प्रत्यय, 'ख-श्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, “अन् विकरण: कर्तरि'' (३।२।३२) से 'अन्' विकरण, “नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गणः (३।८११) से इकार को गुण, “ए अय्' (१।२।१२) से अयादेश, “ह्रस्वारुपानोऽन्तः'' (४।१।२२) से मकारागम तथा विभक्तिकार्य । २. जनमेजयः । जन + एजि + खश् + सि । जनमेजयति । ‘जन शब्द के उपपद में रहने पर ‘एजि' धातु से ‘खश्' प्रत्यय आदि पूर्ववत् ।।१०३५। १०३६. शुनीस्तनमुञ्जकूलास्यपुष्पेषु धेटः [४।३।३१] [सूत्रार्थ 'शुनी, स्तन, मुञ, कूल, आस्य, पुष्प' शब्दों के उपपद में रहने पर 'धेट पाने' (१९६४) धातु से ‘खश्' प्रत्यय होता है ।।१०३६।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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