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________________ २४१ चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये तृतीयः कर्मादिपादः १०१५. सुरासीध्वोः पिबतेः [४।३।१०] [सूत्रार्थ 'सुरा-सीधु' इन कर्म कारकों के उपपद में रहने पर उपसर्गरहित 'पा' धातु से 'टक्' प्रत्यय होता है ।।१०१५। [दु० वृ०] सरासीध्वोः कर्मणोरुपपदयोरन्पसर्गात् पिबतेष्टग भवति । सुरापी, सीधुपी । सरासीध्वोरिति किम् ? क्षीरपा ब्राह्मणी । पिबतेरिति किम् ? सुरापा स्त्री । अनुपसर्गादिति किम् ? सुराप्रपायः ।।१०१५। [वि० प०] सुरा० । क्षीरपा, सुरापेति । “आतोऽनुपसर्गात् कः' (४।३।४) इत्येव भवति ।।१०१५। [समीक्षा 'सुरापी, सीधुपी' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'टक' प्रत्यय का विधान किया गया है । अन्तर यह है कि पाणिनीय व्याकरण में वार्त्तिककार ने इस अंश की पूर्ति की है – “सुरासीध्वोः पिबतेरिति वक्तव्यम्” (अ० ३।२।८वा०) । अत: प्राय: उभयत्र समानता ही कही जा सकती है। [रूपसिद्धि] १. सुरापी । सुरा + पा + टक् + ई + सि । सुरां पिबति । 'सुराम्' इस कर्म के उपपद में रहने पर ‘पा पाने' (१।२६४) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'टक्' प्रत्यय, आकारलोप, स्त्रीलिङ्ग में 'ई' प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य । २. सीधुपी। सीधु + पा + टक् + ई + सि । सीधु पिबति । ‘सीधु' कर्म के उपपद में रहने पर 'टक्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।।१०१५। १०१६. होऽज् वयोऽनुद्यमनयोः [४।३।११] [सूत्रार्थ कर्म कारक के उपपद में रहने पर 'वयस्' तथा 'अनुद्यमन' अर्थ के गम्यमान होने पर 'ह' धातु से 'अच्' प्रत्यय होता है ।।१०१६। [दु० वृ०] ___ अनुपसर्गादिति न स्मर्यते। कर्मण्युपपदे हरतेर्वयसि गम्यमानेऽनुद्यमने चार्थे वर्तमानादज् भवति। ऊर्ध्वं यमनमुद्यमनम् , ततोऽन्यदनुद्यमनम्। वयोग्रहणमुद्यमनार्थम्, सम्भाव्यमानं चात्र वयो गम्यते। कवचहरः क्षत्रियकुमारः, अस्थिहर: श्वा, अंशहरो दायादः, वातहरं तैलम् । उद्यमने तु भारहारः। अणोऽपवादोऽयम् ।।१०१६। [दु० टी०] ह० । सम्भाव्यमानमिति । इयं क्षत्रियकुमारस्य वयोऽवस्था, यथा कवचमुत्क्षिपति, समर्थो वा तदुत्क्षेपणे ॥१०१६।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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