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चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये द्वितीयो धातुपादः
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[विशेष वचन] १. शिल्पं विज्ञानकौशलम् (दु० वृ०) । २. षकारो नदाद्यर्थः (क० च०) । [रूपसिद्धि
१. नर्तकः, नर्तकी। नृत् + वुष् – अक + सि । 'नृती गात्रविक्षेपे' (३।७) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'वुष्' प्रत्यय, 'वु' को “युवुझामनाकान्ता:' (४।६।५४) से 'अक' आदेश, धातुघटित उपधासंज्ञक ऋकार को गुणादेश तथा विभक्तिकार्य । षकारानुबन्ध के कारण स्त्रीलिङ्ग में 'ई' प्रत्यय – 'नर्तकी' ।
२. खनकः, खनकी। खन् + वुष् + अक + सि । ‘खनु अवदारणे' (११५८४) धातु से 'वुष्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।
३. रजकः, रजकी। रन्ज् + तुष् - अक + सि । 'रन्ज् रागे' (१।६०५) धातु से 'वुष्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।।१०००।
१०० १. गस्थकः [४।२।६२] [सूत्रार्थ
शिल्पी अर्थ के विवक्षित होने पर 'गै' धातु से 'थक' प्रत्यय होता है ।।१००१।
[दु० वृ०] गायते: शिल्पिन्यभिधेये थकः प्रत्ययो भवति । गाथकः ।।१००१। [दु० टी०]
गस्थकः । गाङो नाभिधानम् , 'निरनुबन्धग्रहणे न सानुबन्धकस्य' (का० परि० ४८) इत्याह – गायतेरिति ।१००१।
[वि०प०]
गस्थकः । गायतेरिति । 'गाङ् श्यैङ् गतौ' (१।४५९) इत्यस्यानभिधानादित्यर्थः।।१००१।
[समीक्षा]
'गाथकः' शब्द के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'थक' प्रत्यय किया गया है। कातन्त्रकार ने कोई अनुबन्ध नहीं जोड़ा है, जबकि पाणिनि ने नकारानुबन्ध किया है। उनका सूत्र है - “गस्थकन्” (अ० ३।१।१४६)। अत: अनुबन्ध के अतिरिक्त उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. गाथकः। गै + थक + सि। 'गै शब्दे' (१।२५६) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'थक' प्रत्यय, ऐकार को आकारादेश तथा विभक्तिकार्य।।१००१।
१००२. ण्युट च [४।२।६३] [सूत्रार्थ]
'शिल्पी' अर्थ के विवक्षित होने पर 'गै' धातु से ‘ण्युट' प्रत्यय होता है ।।१००२।