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चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये द्वितीयो धातुपादः
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[दु० वृ०]
एतो निपात्येते नक्षत्रे कर्तरि अधिकरणे वा। पुष्णाति कार्याणि पुष्यन्त्यस्मिन्निति वा-पुष्यः। साधयति कार्याणि सिध्यन्त्यस्मिन्निति वा – सिध्यः पुष्य एव।।९७१।
[समीक्षा]
'पुष्यः - सिद्ध्यः' शब्दों की क्यप्-प्रत्ययान्त निपातन से सिद्धि दोनों व्याकरणों में की गई है। पाणिनि का सूत्र है- "पुष्यसिद्ध्यौ नक्षत्रे'' (अ० ३।१।११६)। अत: उभयत्र समानता है।
[रूपसिद्धि]
१. पुष्यः। पुष् + क्यप् + सि। पुष्णाति कार्याणि, पुष्यन्ति कार्याणि अस्मिन्निति वा। 'पुष पुष्टौ' (१।२२८) धातु से कर्ता या अधिकरण अर्थ में प्रकृत सूत्र द्वारा निपातन से क्यप् प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।
२. सिध्यः। साध् + क्यप् + सि। साधयति कार्याणि, सिध्यन्ति कार्याण्यस्मिन्निति वा। 'साध संसिद्धौ' (३।२३) धातु से क्यप् प्रत्यय, आकार को इकार तथा विभक्तिकार्य।।९७१।
९७२. युग्यं पत्रे [४।२।३३]
[सूत्राथ
'वाहन' अर्थ में 'युग्यम्' शब्द निपातन से क्यप्प्रत्ययान्त सिद्ध होता है।।९७२।
[दु० वृ०]
युग्यमिति निपात्यते पत्रे वाहनेऽथें। युज्यतेऽनेनेति, युज्यते इति वा-युग्यं पत्रम् ।।९७२।
[समीक्षा]
'युग्यम्' शब्द पत्र-वाहन अर्थ में दोनों व्याकरणों में निपातन से सिद्ध किया गया है। पाणिनि का सूत्र है – “युग्यं च पत्रे' (अ०३।१।१२१)। अत: उभयत्र समानता ही है।
[रूपसिद्धि]
१. युग्यम् । युज् + क्यप् + सि। युज्यतेऽनेनेति, युज्यते इति वा। 'युजिर् योगे' (६।७) धातु से 'क्यप्' प्रत्यय, जकार को गकार तथा विभक्तिकार्य।।९७२।
९७३. कृष्टपच्यकुप्ये संज्ञायाम् [४।२।३४] [सूत्रार्थ]
'कृष्टपच्याः, कुप्यम् ' ये दोनों शब्द सज्ञा अर्थ में निपातन से सिद्ध होते हैं।।९७३।