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________________ कातन्त्रव्याकरणम् [समीक्षा] 'सूर्य, रुच्य, अव्यथ्य' शब्दरूपों की सिद्धि क्यप्प्रत्ययान्त निपातन से दोनों व्याकरणों में की गई है। पाणिनि का सूत्र है “राजसूयसूर्यमृषोद्यरुच्यकुप्यकृष्टपच्याव्यथ्या:" (अ०३।१।११४)। अत: उभयत्र प्रायः समानता ही है । [रूपसिद्धि] १. सूर्यः। सू, सृ + क्यप् + सि। सुवति लोकान् । 'घू प्रेरणे' (५।१८) धातु से क्यप् प्रत्यय, रेफागम तथा विभक्तिकार्य। सरति सततम् । 'सृ गतौ' (१।२७४) धातु से क्यप् प्रत्यय, 'ऋ' को उर्-ऊर् तथा विभक्तिकार्य। २. रुच्यः। रुच् + क्यप् + सि। रोचते। ‘रुच दीप्तौ' (१।४७३) धातु से क्यप् प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य। ३. अव्यथ्यः। नञ् + व्यथ् + क्यप् + सि। न व्यथते। 'व्यथ दुःखभयचलनयोः' (१।४९०) धातु से क्यप् प्रत्यय, नसमास तथा विभक्तिकार्य।।९६९। ९७०. भिद्योद्ध्यौ नदे [४।२।३१] [सूत्रार्थ] 'भिद्य' तथा 'उद्ध्य' शब्द 'नद' अर्थ में निपातन से सिद्ध होते हैं ।।९७०। [दु० वृ०] एतौ नदे कर्तरि निपात्यते। भिनत्ति कूलानीति–भिद्यो नदः। उज्झत्युदकमितिउद्ध्यो नदः। कथं भेद्यो नदः, उज्झ्यो नदः इति कर्मविवक्षायाम् ।।९७०। [समीक्षा] 'भिद्य-उद्ध्य' शब्दों को कर्ता अर्थ में सिद्ध करने के लिए दोनों ही व्याकरणों में निपातन से क्यप् प्रत्यय की व्यवस्था की गई है। पाणिनि का सूत्र है— “भिद्योद्ध्यौ नदे'' (अ० ३।१।११५)। अत: उभयत्र समानता ही है । [रूपसिद्धि] १.भिद्यः। भिद् + क्यप् + सि। भिनत्ति कूलानि। 'भिदिर् विदारणे' (६।२) धातु से कर्ता अर्थ में निपातन द्वारा क्यप् प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य। २. उद्ध्यः । उज्झ् + क्यप् + सि। उज्झत्युदकम् । 'उज्झ उत्सर्गे' (५।२८) धातु से कर्ता अर्थ में निपातन से क्यप् प्रत्यय तथा विभक्तिकार्य।।९७०। ९७१. पुष्यसिध्यौ नक्षत्रे [४।२।३२] [सूत्रार्थ] 'पुष्य-सिध्य' शब्द कर्ता या अधिकरण अर्थ में नक्षत्रवाची होने पर क्यप्रत्ययान्त निपातन से सिद्ध होते हैं।।९७१।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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