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________________ चतुर्थे कृतात्ययाध्याये प्रथमः सिद्धिपादः १३९ [समीक्षा] 'घास:, विघसः' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में ‘अद्' धातु को 'घस्लू' आदेश किया गया है। पाणिनि का सूत्र है – “घञपोश्च' (अ०२।४।३८)। अत: उभयत्र समानता ही है। [रूपसिद्धि] १. घासः। अद् + घञ् + सि। ‘अद भक्षणे' (२।१) धातु से “भावे' (४।५।३) सूत्र द्वारा ‘घञ्' प्रत्यय, 'घ् - ज्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से 'अद्' को 'घस्ल' आदेश, “अस्योपधाया दीर्घो वृद्धिर्नामिनामिनिचटसु' (३।६।५) से उपधादीर्घ तथा विभिक्तिकार्य। २. विघसः। वि + अद् - घस् + अल् + सि। 'वि' उपसर्गपूर्वक ‘अद्' धातु से "उपसर्गेऽदे:' (४।५।४२) सूत्र द्वारा ‘अल्' प्रत्यय, 'घस्ल' आदेश तथा विभक्तिकार्य।।९३८। ९३९. क्त - क्तवन्तू निष्ठा [४।१।८४] [सूत्रार्थ] 'क्त' तथा 'क्तवन्तु' प्रत्ययों की निष्ठा संज्ञा होती है।।९३९। [दु० वृ०] क्तक्तवन्तु प्रत्ययौ निष्ठासङ्घको भवतः। शब्दस्य नित्यत्वाद् अन्वाख्याने भाविनोनेंतरेतराश्रयदोषः इति। शीर्णः, शीर्णवान्। भिन्नः, भिन्नवान्। निष्ठाप्रदेशा: - "निष्ठा" (४।३।९३) इत्येवमादयः। क्त्वा मकारान्तश्च कृत् स्वभावादसङ्ख्य इत्यव्ययमेव।।९३९। ।। इत्याचार्यदुर्गसिंहप्रणीतायां दौर्गसिंह्यां वृत्तौ चतुर्थे कृदध्याये प्रथमः सिद्धिपादः समाप्तः।। [दु० टी०] क्त०। निरन्वया स्त्रीलिङ्गा पूर्वाचार्यसंज्ञेयं क्तक्तवन्त्वोर्लिङ्गसंख्याभ्यां न युज्यते, स्वभावात्।।९३९। ।।इत्याचार्यदुर्गसिंहप्रणीतायां दौर्गसिंह्यां कातन्त्रवृत्तिटीकायां चतुर्थे कृदध्याये प्रथमः सिद्धिपादः समाप्तः।।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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