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________________ चतुर्थे कृतात्ययाध्याये प्रथमः सिद्धिपादः ११५ [दु० वृ०] उन्देर्मनि पञ्चमो लोप्यो भवति। ओद्म, ओद्मनी।।९१८! [समीक्षा] 'ओम' शब्दरूप के सिद्ध्यर्थ 'उन्दी' धातुगत नकार के लोप का विधान दोनों व्याकरणों में देखा जाता है। पाणिनि ने नलोप तथा गुण का निर्देश निपातन से किया है, जबकि कातन्त्र में साक्षात् नकारलोप का विधान है। पाणिनि का सूत्र है"अवोदैधौद्मप्रश्रथहिमश्रथा:' (अ०६।४।२९)। पाणिनीय निपातनविधि की अपेक्षा कातन्त्रीय नलोपविधान अधिक सौकर्याधायक कहा जा सकता है। [रूपसिद्धि १. ओद्म। उन्दी + मन् + सि। 'उन्दी क्लेदने' (६।१६) धात् से "सर्वधातृभ्यो मन्' (कात० उ० ४।२८) सूत्र द्वारा ‘मन्' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से नलोप, गुण तथा विभक्तिकार्य। २. ओद्मनी। उन्दी + मन् + औ - नपुंसकलिङ्ग। 'उन्दी' धातु से मन् प्रत्यय, नलोप, लिङ्गसंज्ञा, नपुंसकलिङ्ग में प्रथमाविभक्ति-द्विवचन 'औ' प्रत्यय तथा "औरीम्' (२।२।९) से औकार को ईकार।।९१८।। ९१९. घजीन्धेः [४।१।६४] [सूत्रार्थ 'घञ्' प्रत्यय के परे रहते ‘ञि इन्धी दीप्तौ' (६।२२) धातु- घटित नकार का लोप होता है।।९१९। [दु० वृ०] इन्धेर्घजि पञ्चमो लोप्यो भवति। एध: ।।९१९। [समीक्षा “एध:' शब्द के सिद्ध्यर्थ इन्धीधातगत नकार का लोप दोनों ही व्याकरणों में किया गया है। अन्तर यह है कि पाणिनि निपातन से नलोप करके “एध' शब्द सिद्ध करते हैं, जब कि कातन्त्र में इसके लिए स्वतन्त्र सूत्र द्वारा साक्षात् विधान किया गया है। पाणिनि का सूत्र है—अवोदैधौद्मप्रश्रथहिमश्रथाः' (अ०६।४।२९)। अत: पाणिनीय निपातनविधि में गौरव एवं कातन्त्रीय साक्षात् विधान में लाघव स्पष्ट प्रतीत होता है। [रूपसिद्धि] १. एधः। इन्ध् + घञ् + सि। 'त्रि इन्धी दीप्तौ' (६।२२) धातु से भाव अर्थ में "भावे” (४।५।३) सूत्र द्वारा ‘घञ्' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से नलोप, गुणादेश तथा विभक्तिकार्य।।९१९। ९२०. स्यदो जवे [४।१।६५] [सूत्रार्थ] 'घन्' प्रत्यय के परे रहते वेग अर्थ के गम्यमान होने पर 'स्यन्दू' धातु से 'स्यद' रूप निपातनद्वारा दीर्घाभाव होकर सिद्ध होता है।।९२०।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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