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________________ चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये प्रथमः सिद्धिपादः लोलः' इत्यत्र क्विपो लोपे वर्णाश्रयेऽपि प्रत्ययलोपलक्षणं क्वचिदिति “य्वोर्व्यञ्जनेऽये" (४।१।३५) इति लोपार्थम् । अन्यथा इकारादीनामनुबन्धानामप्रयोगित्वाद् व्यञ्जनाभावात् कथं प्रत्ययलोपलक्षणेऽपि लोपः । यद् वा यदि वकारो न दातव्यस्तदा प्रत्ययाभावोऽनर्थक: स्यादिति ।।८८९। [समीक्षा] 'घृतस्पृक्, अर्धभाक्, कीलालपाः' इत्यादि शब्दों में 'क्विप् - विण् - विच्' प्रत्ययघटित 'वि' के लोप का विधान दोनों ही व्याकरणों में किया गया है । पाणिनि का सूत्र है – “वेरपृक्तस्य' (अ० ६।१।६७) । अत: उभयत्र समानता है । [विशेष वचन] १. प्रत्ययत्वप्रत्यभिज्ञानादर्थवत्ता, शास्त्रव्यवहाराद्धि प्रकृतिप्रत्ययादिकल्पना (दु० टी०)। २. कृत्संज्ञकस्येत्यत्र प्रकरणमाश्रयणीयमित्यर्थः (वि० प०) । ३. वेरिति इकार उच्चारणार्थः, वकारमात्रस्य लोपः (क० च०) । [रूपसिद्धि १. घृतस्पृक् । घृत + स्पृश् + क्विप् + सि । घृतं स्पृशति । 'घृत' शब्द के उपपद में रहने पर 'स्पृश् संस्पर्श' (५।५४) धातु से “क्विप् च” (४।३।६८) सूत्र द्वारा 'क्विप्' प्रत्यय, 'क्-इ-प्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से '' का लोप, लिङ्गसंज्ञा, सिप्रत्यय, “छशोश्च' (३।६।६०) से श् को ए , “षढो: क: से' (३।८।४) से ष् को क् तथा “व्यञ्जनाद् दिस्योः” (३।६।४७) से 'सि' प्रत्यय का लोप । २. अर्द्धभाक् । अर्द्ध + भज् + विण् + सि । अर्द्धं भजते । 'अर्द्ध' शब्द के उपपद में रहने पर 'भज सेवायाम्' (१।६०४) धातु से “भजो विण्' (४।३।५९) सूत्र द्वारा ‘विण्' प्रत्यय, “अस्योपधाया दी? वृद्धि मिनामिनिचट्सु" (३।६।५) से उपधादीर्घ, प्रकृतसूत्र से 'वि' का लोप, लिङ्गसंज्ञा, सि-प्रत्यय, “चवर्गस्य किरसवणे" (३।६।५५) से ज् को ग् , “पदान्ते धुटां प्रथमः” (३।८।१) से ग् को क् तथा सिप्रत्यय का लोप। ३. कीलालपाः । कीलाल + पा + विच् + सि । कीलालं पिबति । ‘कीलाल' शब्द के उपपद में रहने पर 'पा पाने' (१।२६४) धातु से "आतो मन् - क्वनिप् - वनिप् - विचः' (४।३।६६) से 'विच्' प्रत्यय, च् - अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से 'वि' का लोप, लिङ्गसंज्ञा, सि-प्रत्यय तथा “रसकारयोर्विसृष्टः' (३।८।२) से सकार को विसर्गादेश ।।८८९।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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