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________________ कातन्त्रव्याकरणम् ६२ धातोः प्रागुपसर्गसम्बन्धोऽत्र । यद् वा उपसर्गसम्बन्धो भविष्यतीति कृत्वा प्रसक्तावात्मनेपदमेव प्रवर्तते ||८८५| [समीक्षा] ‘अग्निचित्, सोमसुत्, उपस्तुत्य' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ ह्रस्वान्त धातु के बाद तकारविधान दोनों ही व्याकरणों में किया गया है । पाणिनि का तुगागमविधायक सूत्र है - "ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्” (अ० ६।१।७१) | कित् आगम तदर्थ योजनानिर्धारक सूत्र बनाकर पाणिनि ने गौरव दिखाया है, जबकि कातन्त्र में तकारागम को धातु के अन्त में एक ही सूत्र द्वारा निर्धारित कर लाघव सूचित किया गया है । इत् - अनुबन्धसंज्ञाओं का प्रयोग अपने अपने व्याकरण की व्यवस्था के अनुसार किया गया है। — [विशेष वचन ] १. साधनायत्तत्वात् क्रियायाः (दु० वृ० ) | २. अन्तग्रहणं सुखार्थम् (दु० वृ०; क० च० ) । ३. एकविभक्तियुक्तानां क्वचिद् एकदेशोऽप्यनुवर्तते (दु० टी० ) । ४. उपसर्गा हि विशेषका भवन्ति । ते च साधनतो लब्धात्मभावां क्रियां विशेष्टुमर्हन्ति ( वि० प० ) । ५. अन्तग्रहणं भूतपूर्वह्रस्वप्रतिपत्त्यर्थम् (क० च० ) । ६. सुखार्थमनुबन्धग्रहणम् (क० च० ) । ७. क्विबन्तो धातुत्वं न जहाति, जहाति वा भूतपूर्वस्तदुपचारः पर्यवसितार्थ इति कुलचन्द्र: (क० च०) । ८. क्विप्समीपभूतानां प्रकृतयो धातुत्वं न जहति क्विबवयवास्तु धातुत्वं " जहति (क० च० ) । [रूपसिद्धि] : १. अग्निचित् । अग्नि + चि + तकारागम + क्विप् + सि । अग्निं चितवान् । 'अग्नि' के उपपद में रहने पर 'चिञ् चयने' ( ४/५ ) धातु से "क्विप् च" (४।३।६८) सूत्र द्वारा 'क्विप् प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से तकारागम, “वेर्लोपोऽपृक्तस्य” (४।१।३४) से 'वि' का लोप तथा विभक्तिकार्य । २. सोमसुत् । सोम + सु + तकारागम + क्विप् + सि । 'सोम' उपपदपूर्वक 'षुञ् अभिषवे' (४।१) धातु से क्विप् प्रत्यय, तकारागम, 'वि' का लोप तथा विभक्तिकार्य । ३. प्रकृत्य । प्र + कृ + क्त्वा-यप् + सि । ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक 'डुं कृञ् करणे' (७/७) धातु से " एककर्तृकयोः पूर्वकाले” (४।६।३) सूत्र द्वारा 'क्त्वा' प्रत्यय, “समासे भाविन्यनञः क्त्वो यप्" (४।६।५५) से क्त्वा को यप् आदेश, पकारानुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से तकारागम तथा विभक्तिकार्य ।
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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