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कातन्त्रव्याकरणम्
[बि० टी० ]
श्वयते ० ० । अप्राप्ते विभाषयमिति हेमकरः । अनन्तरत्वादत्रापि नानुवर्तते पृथग् योगात् । ततश्च स्वकार्यानुपादानात् संप्रसारणमनुवर्तते । विशेषातिदिष्टत्वादिति वा श्रयणीयम्।। ५५१। [समीक्षा]
'शोशूयते, शुशाव' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में वैकल्पिक सम्प्रसारणविधान किया गया है। पाणिनि का सूत्र है "विभाषा श्वे : " (अ० ६।१ । ३०) । धातु का निर्देश इक्प्रत्ययान्त, अप्रत्ययान्त अथवा तिप् (श्तिप्) प्रत्ययान्त मान्य है “इकश्तिपो धातुनिर्देशे”। पाणिनि ने 'श्वे ' यह निर्देश इक्प्रत्ययान्त किया है, जब कि कातन्त्रकार का 'श्वयते' यह पाठ शितप् ( तिप् ) प्रत्ययान्त है।
[रूपसिद्धि]
१. शोशूयते, शेश्वीयते । शिव + य + ते । भृशं श्वयति। 'टु ओ श्वि गतिवृद्ध्यो:' (१ । ६१६) धातु से "धातोर्यशब्दश्चेक्रीयितं क्रियासमभिहारे" (३ । २ । १४) सूत्र द्वारा क्रियासमभिहार अर्थ में चक्रीयितसंज्ञक 'य' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से वैकल्पिक सम्प्रसारण, द्विर्वचन, अभ्याससंज्ञा. "गुणश्चेकीयिते" (३ । ३ । २८) से अभ्यासघटित उकार को गुण - ओकार, "नाम्यन्तानां यणायियिन्नाशीश्च्विचेक्रीयितेषु ये दीर्घः " (३ । ४ । ७०) से धातुघटित उकार को दीर्घ, "ते धातवः' (३ । २ । १६) से 'शांशूय' की धातुसंज्ञा तथा वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपद- - प्रथमपुरुष एकवचन 'ते' प्रत्यय। सम्प्रसारण के अभाव में 'शेश्वीयते' शब्दरूप सिद्ध होगा।
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२. शुशाव, शिश्वाय । शिव + परीक्षा अट् । 'टु ओ श्वि गतिवृद्ध्योः ' (१ । ६१६) धातु से परीक्षाविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद - प्रथमपुरुष एकवचन 'अट्' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से वैकल्पिक सम्प्रसारण, द्वित्व, "अस्योपधाया दीर्घो वृद्धिर्नामिनामिनिचट्सु " (३ । ६ । ५) से धातुटित उकार को वृद्धि औकार तथा 'औ आव्' (१ । २ । १५) से औकार को 'आव्' आदेश । सम्प्रसारण के अभाव में शिश्वाय' रूप द्रष्टव्य है ! ३. शुशुवतुः, शिश्वियतुः। श्वि + परीक्षा - अतुम् । श्वि' धातु से परीक्षाविभक्तिसंज्ञक प्रथमपुरुष द्विवचन 'अतुस्' प्रत्यय् प्रकृत सूत्र से वैकल्पिक सम्प्रसारण, द्विर्वचन, “स्वरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवौ” (३ । ४ । ५५ ) से धातुघटित उकार को उव् तथा 'रसकारयोर्विसृष्टः " (२ । ३ । ६३) से सकार को विसर्गादेश । सम्प्रसारण
के अभाव में 'शिश्वियतुः ' शब्दरूप सिद्ध होगा ।। ५५१ |
५५२. कारिते च संश्चणो: [ ३ । ४ । १२]
[सूत्रार्थ ]
सन् अथवा चण् प्रत्यय से युक्त कारितसंज्ञक 'इन्' प्रत्यय के परे रहते 'शिव' धातु को विकल्प से सम्प्रसारण होता है ।। ५५२ १