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कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा]
'मा भवान् करोत्, मास्म भवान् करोत्, मा भवान् कार्षीत्, मास्म भवान् ईक्षत' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ धातुपूर्व अडागम-आडागम (धात्वादि स्वर को दीर्घ-वृद्धि) के अभाव की आवश्यकता होती है । इसकी पूर्ति उभयत्र की गई है । अन्तर यह है कि पाणिनि ने केवल 'मा' शब्द का ही सूत्र में पाठ किया और 'मा-स्म' में भी 'मा' की उपस्थिति मानकर अभीष्टसिद्धि दिखाई है, जबकि कातन्त्रकार ने 'मा-स्म' में दो निपात मानकर उनके योग में केवल माशब्द के अभाव से अभीष्टसिद्धि मे बाधा समझकर 'मामास्म' दोनों को सूत्र में पढ़ा है । पाणिनि का सूत्र है – “न माङ्योगे" (अ० ६।४।७४)।
[विशेष वचन] १. संयुक्ते न स्यादिति मास्मग्रहणम् (दु० वृ०)। २. साहचर्यान्मदो न स्यात् - मा भवान् अपश्यत् (दु० वृ०)। ३. माश्च स्मश्च मास्मम्, समाहारद्वन्द्वः। माश्च मास्मं च मामास्मे, ताभ्यां योगे इत्यर्थः ___ (दु० टी०)। ४. मायुक्तः स्म: मास्मः । संश्लिष्टनिर्देशोऽयं भाष्यसम्मत: पक्ष: (दु० टी०)। ५. तृतीयानिर्देशेनापि निवौंढुं शक्यते, योगग्रहणं स्पष्टार्थम् (दु० टी०)। ६. न चादुष्टभावो निन्दनीयः (वि० प०)। ७. मास्मशब्देनाव्ययेन सहचरितो माशब्दोऽप्यव्यय एवेत्याह- साहचर्यादिति । तेन
त्वन्मदोरकत्वे इत्यादिना मादेशे माशब्दयोगे न भवतीत्यर्थः (वि० प०)। [रूपसिद्धि]
१. मा भवान् करोत् । मा + कृ + उ + ह्यस्तनी-दि । 'डु कृञ् करणे' (७।७) धातु से ह्यस्तनीविभक्तिसंज्ञक प्र० पु०-ए० व० 'दि' प्रत्यय, “अड् धात्वादि०" (३।८।१६) से प्राप्त अडागम का प्रकृत सूत्र द्वारा निषेध, “तनादेरुः' (३।२।३७) से 'उ' विकरण, “नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गणः' (३।५।१) से कृधातुगत ऋ तथा उ-विकरण को गुण तथा “पदान्ते धुटां प्रथम:'' (३।८।१) से दकार को तकारादेश ।
२. मास्म करोत् । मास्म + कृ + उ + ह्यस्तनी-दि । 'मास्म' पूर्वक 'कृ' धातु से ह्यस्तनीविभक्तिसंज्ञक प्र० पु० - ए० व० “दि' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।
३. मा भवान् कार्षीत् । मा + कृ + सिच् + अद्यतनी-दि । 'मा' निपातपूर्वक 'डु कृञ् करणे' (७।७) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक प्र० पु०-ए० व० 'दि' प्रत्यय, अडागम का प्रकृत सूत्र द्वारा निषेध, “सिजद्यतन्याम्' (३।२।२४) से सिच् प्रत्यय, "सिचः" (३।६।९०) से ईट् आगम, “सिचि परस्मै स्वरान्तानाम्" (३।६।६) से कृधातुगत ऋकार को वृद्धि आर्, “निमित्तात् प्रत्ययविकारागमस्थ: स: षत्वम्" (३।८।२६) से सकार को षकार तथा “पदान्ते धुटां प्रथमः'' (३।८।१) से दकार को तकारादेश ।
४. मास्म कार्षीत् । मास्म + कृ + सिच् + अद्यतनी दि । 'मास्म' पूर्वक 'कृ' धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक प्र० पु०-ए० व० 'दि' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।।८४१।