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तृतीये आख्याताध्याये सप्तमः इडागमादिपादः
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३. स्वपिति । स्वप् + इट् + ति। 'त्रिष्वप शये' (२।३२) धातु से वर्तमानासंज्ञक ‘ति’ प्रत्यय, “धात्वादेः ष: स:' ( ३।८।२४) से षकार को सकार, अन्लुक्, तथा प्रकृत सूत्र से इडागम।
४. स्वपितः । स्वप् + इट् + तस् । 'त्रिष्वप शये' (२।३२) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।
५. श्वसिति । श्वस् + इट् + ति। 'श्वस् प्राणने' (२।३३) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'ति' प्रत्यय तथा शेष पूर्ववत् ।
६. श्वसितः। श्वस् + इट् + तस् । 'श्वस् प्राणने ' (२।३३) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय तथा शेष पूर्ववत् ।
७. प्राणिति । प्र+अन् + इट् + से वर्तमानासंज्ञक ‘ति’ प्रत्यय तथा शेष पूर्ववत् ।
ति। 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'अन प्राणने ' (२।३४) धातु
८. प्राणितः । प्र + अन् + इट् + तस् । 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'अन प्राणने ' (२।३४) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय तथा शेष पूर्ववत् ।
९. क्षिति। जक्ष् + इट् + ति । 'जक्ष भक्षहसनयो: ' (२।३५) से वर्तमानासंज्ञक 'ति' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
१०. जक्षितः । जक्ष् + इट् + तस् । 'जक्ष भक्षहसनयो: ' (२।३५) से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय तथा शेष पूर्ववत् ॥७८५ ।
७८६. ईश: से [३।७।४]
[ सूत्रार्थ]
सकारादि सार्वधातुक प्रत्यय के परे रहते 'ईश्' धातु से उत्तर तथा प्रत्यय से पूर्व इडागम होता है ।। ७८६।
[दु० वृ०]
ईशः सादौ सार्वधातुके आदिरिडागमो भवति । ईशिषे, ईशिष्व ॥ ७८६ । [समीक्षा]
'ईशिषे, ईशिष्व' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में इडागम किया गया है। पाणिनि का सूत्र है - "ईशः से" (अ० ७।२।७७)। पाणिनि के अनुसार इडागम सार्वधातुक प्रत्यय को होता है, 'इट्' आगम यतः टित् है, अतः “आद्यन्तौ टकितौ” (अ० १।१।४६) इस परिभाषाबल से 'से' प्रत्यय से पूर्व प्रवृत्त होकर उसी का आदि अवयव माना जाता है । कातन्त्रकार ने सूत्र सं० ३ ७ १ में इडागम को धातु से उत्तर तथा प्रत्यय से आदि में विहित किया है, उसी की अनुवृत्ति प्रकृत सूत्र में भी होती है, उस अनुवृत्तिबल से प्रत्ययपूर्व में इडागम होगा।
[रूपसिद्धि]
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१. ईशिषे । ईश् + इट् + से । 'ईश ऐश्वर्ये' (२।४४) धातु से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद - मध्यमपुरुष- ए० व० 'से' प्रत्यय, अन्लुक्, प्रकृत सूत्र से इडागम, तथा “निमित्तात् प्रत्ययविकारागमस्थः सः षत्वम् ' ( ३।८।२६ ) से सकार को षकारादेश।। ७८६ ।