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कातन्त्रव्याकरणम्
२. अरोदीः। अट् + रुद् + ईट् + सि। 'रुदिर् अश्रुविमोचने' (२।३१) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक म० पु० -ए० व० 'सि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
३. अस्वपीत्। अट् + स्वप् + ईट् + दि। 'जि ष्वप शये' (२।३२) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
४. अस्वपीः। अट् +स्वप् + ईट् + सि। 'जि ध्वप शये' (२।३२) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'सि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।।
५. अश्वसीत्। अट् + श्वस् + ईट् + दि। 'श्वस प्राणने' (२।३३) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
६. अश्वसीः। अट् + श्वस् + ईट् + सि। 'श्वस प्राणने' (२।३३) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'सि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।
७. प्राणीत्। प्र + अन् + ईट + दि। 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'अन च' (२।३४) धात् से ह्यस्तनीसंज्ञक 'दि' प्रत्यय तथा अन्य प्रलिया पूर्ववत् ।
८. प्राणीः। प्र + अन् + ईट् + सि। 'प्र' उपसर्गपूर्वक ‘अन च' (२।३४) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'सि' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।
९. अजक्षीत्। अट् + जक्ष् - ईट् + दि। 'जक्ष भक्षहसनयोः' (२।३५) धातु से हस्तनीविभक्तिसंज्ञक 'दि' प्रत्यय तथा शेष प्रक्रिया पूर्ववत् ।
१०. अजक्षीः। अट् + जक्ष् + ईट् + सि। 'जक्ष भक्षहसनयोः' (२।३५) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक 'सि' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।।७७१।
७७२. अदोऽट् [३।६।९२] [सूत्रार्थ 'अद् ' धातु से परवर्ती 'दि-सि' प्रत्ययों से पूर्व 'अट्' आगम होता है।।७७२! [दु० वृ०]
अद: परयोर्दिस्योर्वचनादिरड् भवति । आदत्, आदः। रुदादेरपि केचित्-अरोदत्, अरोदः।।७७२।
[दु० टी०]
अदो०। रुदादेरपीत्यादि। एवम् अरोदत् , अरोदः। अस्वपत् , अस्वपः। तदप्रमाणमिह लक्ष्यते, 'रुदादिभ्योऽट चादः' इत्यकरणात् ।।७७२।
[समीक्षा
'आदत, आदः' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ दोनों ही व्याकरणों में 'अडागम' किया गया है। पाणिनि का सूत्र है - "अद: सर्वेषाम्' (अ० ७।३।१००)। वृत्तिकार के
अनुसार कुछ आचार्य पूर्ववर्ती सूत्रपठित रुदादि धातुओं से भी अडागम मानते हैं, परन्तु टीकाकार ने “रुदादिभ्योऽट् चादः' ऐसा सूत्र न बनाए जाने से इसका खण्डन किया है। पाणिनि का सूत्र है-“अड् गायेगालवयोः' (अ० ७।३।९९)। इसके अनुसार 'गार्ग्यगालव' आचार्यों के मत में रुदादि धातुओं से अडागम प्रवृत्त होता है ।