________________
३१६
कातन्त्रव्याकरणम्
[समीक्षा
'बेभिदिता, दशदिता' इत्यादि शब्दों के सिद्ध्यर्थ यकारलोप का विधान दोनों व्याकरणों में किया गया है। पाणिनि के सूत्र हैं - "यस्य हल:, क्यस्य विभाषा" (अ० ६।४। ४९, ५०)। कातन्त्रवृत्तिकार दुर्गसिंह ने विकल्प के लिए पृथक् सूत्र बनाने की आवश्यकता नहीं समझी है, किन्तु उन्होंने प्रमाणवचन के बल पर वैकल्पिक विधान सिद्ध किया है।
[विशेष वचन १. यिन्नाय्योर्नेच्छन्त्येके, नेनोभयप्रमाणत्वाद् विकल्प इति (दु० वृ०)। २. वक्ष्यमाणलोपोक्तेर्द्वियकारपाठाद् वा मव्यादीनामदोषः (दु० वृ०)। ३. पुनलोपग्रहणं पूर्वलोपस्यानित्यत्वार्थम् (द० टी०)। ४. द्वियकारपाठाद् वेति वाग्रहणं पूर्वपक्षार्थम् (दु० टी०)। ५. प्रतिपत्तिरियं गरीयसी स्यात् (दु० टी०)।
६. विकल्पोऽपि वक्ष्यमाणेन पुनर्लोपग्रहणेन पूर्वलोपस्यानित्यत्वादेव भवति (वि० प०)।
[रूपसिद्धि]
१. बेभिदिता। भिद् + य, + इट् + ता। 'भिदिर् विदारणे' (६।२) धातु से 'धातोर्यशब्दश्चक्रीयितं क्रियासभभिहारे'' (३। २। १४) सूत्र द्वारा पुनः पुनर्भेत्ता' इस अर्थ में चेक्रीयितसंज्ञक 'य' प्रत्यय, “चण्परोक्षाचेक्रीयितसनन्तेषु' (३।३।७) से धातु को द्वित्व, “पूर्वोऽभ्यासः'' (३।३।४) से पूर्ववर्ती 'भिद्' की अभ्याससंज्ञा, "अभ्यासस्यादिळञ्जनमवशेष्यम्' (३। ३। ९) से 'द्' का लोप, “गुणश्चेक्रीयिते" (३।३।२८) से अभ्यासघटित इकार को गुण-एकार, “ते धातवः'' (३। २। १६) से 'बेभिद्य' की धातुसंज्ञा, श्वस्तनीसंज्ञक प्र० पु० - ए० व० 'ता' प्रत्यय, "इडागमोऽसार्वधातुकस्यादिळञ्जनादेरयकारादेः'' (३। ७। १) से इडागम तथा प्रकृत सूत्र से यलोप।
२. दृशदिता, दृशधिता। दृशद् + यिन् + इट् + ता। दृशदमिच्छति आचरति वा। 'दृशद्' शब्द से इच्छा या आचार अर्थ में “नाम्न आत्मेच्छायां यिन्' (३। २। ५) सूत्र द्वारा 'यिन्' प्रत्यय, “ते धातवः' (३। २ । १६) से 'दृशद्य' की धातुसंज्ञा, श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, इडागम तथा विकल्प से यकारलोप।
३. भिषजिता। भिषज् + इट् + श्वस्तनी-ता। कण्ड्वादिगणपंठित 'भिषज्य चिकित्सायाम्' (१७) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, इडागम तथा प्रकृत सूत्र से यकारलोप।। ७२८।
७२९. अस्य च लोपः [३।६। ४९] [सूत्रार्थ] 'अन्' से भिन्न प्रत्यय के परे रहते धातु के अकार का लोप होता है।। ७२९ ।