________________
कातन्त्रव्याकरणम्
की आवश्यकता होती है, इसका विधान दोनों व्याकरणों में किया गया है। पाणिनि का सूत्र है – “लोपश्चास्यान्यतरस्यां म्वो:'' (अ० ६। ४। १०७)।
[विशेषवचन] १. अर्थवशाद् विभक्तिविपरिणाम: (टु० टी०)। २. सहाभिधायिनो विकरणा: (दु० टी०)। ३. एकस्मिन्नपि व्यपदेशिवद्भावेनाद्यन्तवद्भाव: (वि० प०)। [रूपसिद्धि]
१. सुन्वः। सु + नु + वस्। 'षुञ् अभिषवे' (४।१) धातु से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक उत्तमपुरुष-द्विवचन ‘वस्' प्रत्यय, “नुः ष्वादे:'' (३।२।३४) से 'नु' विकरण, प्रकृत सूत्र से नु-विकरणगत उकार का लोप तथा सकार को विसर्गादेश। उकारलोप न होने पर 'सुनुवः' रूप साधु होगा।
२. सुन्मः। सु + नु + मस्। 'षुञ् अभिषवे' (४। १) धातु से वर्तमानासंज्ञक उत्तमपुरुष-बहुवचन 'मस्' प्रत्यय, नु–विकरण, प्रकृत सूत्र से उकार का लोप तथा सकार का विसर्गादेश। उकारलोप के अभाव में 'सुनुमः' शब्दरूप साधु होगा।
३. तन्वः। तन् + उ + वस्। 'तनु विस्तारे' (७। १) धातु से वर्तमानासंज्ञक उत्तमपुरुष–द्विवचन ‘वस्' प्रत्यय, “तनादेरु:' (३।२।३७) से 'उ' विकरण, प्रकृत सूत्र से उसका लोप तथा सकार को विसर्गादेश। उकार का लोप न होने पर तनुवः' रूप सिद्ध होगा।
४. तन्मः। तन् + उ + मस्। 'तनु विस्तारे' (७१) धातु से वर्तमानासंज्ञक उत्तमपुरुष-बहुवचन 'मस्' प्रत्यय, उ–विकरण, उसका लोप तथा सकार को विसर्गादेश। उकारलोप के अभाव में 'तनुमः' शब्द साधु माना जाता है।। ५७५ ।
५७६. करोतेर्नित्यम् [३।४।३६] [सूत्रार्थ]
'कृ' धातु से होने वाले विकरण के उकार का लोप होता है, व् तथा म् के परवर्ती होने पर।। ५७६।
[दु० वृ०]
करोते: परस्य विकरणोकारस्य नित्यं लोपो भवति वमोः परतः। कुर्वः, कुर्मः।। ५७६।
[दु० टी०]
करोते: । सुखपाठार्थ एव तिब् निर्दिश्यते। नित्यग्रहणं किमर्थम्, वचनान्नित्यमिति चेत्, इह “ये च" (३।४।३८) इति अबाधिता विभाषा वर्तते।। ५७६ ।