________________
कातन्त्रव्याकरणम्
विधान किया गया है । पाणिनि का सूत्र है - "गुपूधूपविच्छिपणिपनिभ्य आयः " (अ० ३।१।२८) । 'आय' प्रत्यय में कोई अनुबन्ध नहीं लगाया गया है, अतः यहाँ व्याख्याकारों के अनुसार आत्मनेपद नहीं होता है तथा असार्वधातुक प्रत्ययों के होने पर यह आयप्रत्यय विकल्प से प्रवृत्त होता है । परिणामस्वरूप 'गोपायिता - गोप्ता, कामयिता - कमिता' आदि दो-दो रूप सिद्ध होते हैं |
[रूपसिद्धि]
१९८
१. गोपायति । जुगुप्सते । गुप् + आय + ते । 'गुपू रक्षणे' (१।१३२) धातु से स्वार्थ में प्रकृत सूत्र से 'आय' प्रत्यय, "नामिनश्चोपधायाः” (३।५।२) से उपधाभूत उकार को गुणादेश, " ते धातवः " ( ३।२।१६ ) से ' गोपाय' की धातुसंज्ञा, वर्तमानासंज्ञक प्रथमपुरुष एकवचन 'ति' प्रत्यय तथा " अन् विकरण ः कर्तरि " ( ३ । २ । ३२ ) से अन् विकरण - न् अनुबन्ध का प्रयोगाभाव ।
२. धूपायति । धूप + आय + अन् + ति । ' धूप सन्तापे' (१।१३३) धातु से स्वार्थ में प्रकृत सूत्र द्वारा आय प्रत्यय, धातुसंज्ञा तथा विभक्तिकार्य ।
३-५. विच्छायति । विच्छ गतौ + आय + अन् + ति । पणायति । पण् व्यवहारे स्तुतौ च + आय + अन् + ति । पनायति । पन + आय+अन् + ति । पूर्ववत् प्रक्रिया | ६. गोपायिता । गुप् + आय + ता । गुपू धातु से आय प्रत्यय, गुण, धातुसंज्ञा, श्वस्तनीसंज्ञक प्रथमपुरुष एकवचन ता प्रत्यय, "इडागमोऽसार्वधातुके” (३।७।१) से इडागम तथा अकारलोप । आयप्रत्यय के अभाव में इडागम भी नहीं होता है, अतः 'गोप्ता' रूप |
७. गोपाया । गुप् + आय + अ + सि । प्रकृत सूत्र द्वारा आयप्रत्यय, " शंसिप्रत्ययादः ” (४।५।८०) से अ- प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग में "स्त्रियामादा" (२।४।४९) से आप्रत्यय, लिङ्गसंज्ञा, सि-प्रत्यय तथा उसका लोप || ४६५ |
४६६. ते धातवः [ ३।२।१६ ]
[ सूत्रार्थ ]
-
‘सन् - यिन् - काम्य - आयि - इन् - य - आय" इन सात प्रत्ययों में से किसी के भी अन्त में रहने पर निष्पन्न शब्दों (सन् - आदिप्रत्ययान्त) की धातुसंज्ञा होती है || ४६६ |
१. इनङ् - णीयङ्' प्रत्ययान्त शब्दों का भी गणसूत्रपाठ के आधार पर समावेश किया जाता है ।