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कातन्त्रव्याकरणम् से प्राप्त पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से निषेध, परवर्ती पद के अन्तिम आकार को ह्रस्व तथा विभक्तिकार्य।
२. गुप्ताभार्यः । गुप्ता भार्या यस्य सः। गुप्ता + सि + भार्या + सि | बहुव्रीहिसमास, विभक्तिलोप, गोपनक्रियाप्रवृत्तिनिमित्तभूत होने से उक्त सूत्र द्वारा प्राप्त पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से निषेध, उत्तरपदवर्ती आकार को ह्रस्व तथा विभक्तिकार्य ।
३. पञ्चमीभार्यः। पञ्चमी भार्या यस्य सः । पञ्चमी + सि + भार्या + सि | समास, विभक्तिलोप, पूरणप्रत्ययान्त होने से ‘पञ्चमी' शब्द के पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से निषेध, आकार को ह्रस्व तथा विभक्तिकार्य ।
४. पञ्चमीयते ।पञ्चमीवाचरति । “कर्तुरायिः सलोपश्च" (३/२/८) से आयिप्रत्यय, "नामिव्यानान्ताद्" (३/६/४२) से आयि के आदि आ का लोप, वर्तमानकाल में ते - प्रत्यय तथा "भाषितपुंस्कं पुंवत्०" (३/६/६०) से प्राप्त पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से प्रतिषेध।
५. पञ्चमीमानिनी। पञ्चमी मानिनी यस्याः सा । पञ्चमी + सि + मानिनी + सि । समास, विभक्तिलोप, लिङ्गसंज्ञा, सि - प्रत्यय,पूरणप्रत्ययान्त पञ्चमीशब्द को उक्त सूत्र से प्राप्त पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से निषेध तथा विभक्तिकार्य ।
६. पाचिकाभार्यः। पाचिका भार्या यस्य सः । पाचिका + सि + भार्या + सि | बहुव्रीहि समास, विभक्तिलोप, उक्त सूत्र से प्राप्त पुंवद्भाव का प्रकृत सूत्र से निषेध पाचिका के ककारोपध होने के कारण लिङ्गसंज्ञा, सिप्रत्यय, आकार का ह्रस्व तथा विभक्तिकार्य ।
७. मद्रिकाभार्यः। मद्रिका भार्या यस्य सः । मद्रिका + सिं + भार्या + सि | समासादि कार्य तथा ककारोपध होने से मद्रिका शब्द के पुंवद्भाव का निषेध ||३५६।
३५७. कर्मधारयसंज्ञे तु पुंवद्भावो विधीयते [२/५/२०] [सूत्रार्थ]
कर्मधारय समास में तुल्याधिकरण पद के परे रहने पर ऊङन्तवर्जित भाषितपुंस्क शब्द का पुंवद्भाव होता है ।।३५७।