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________________ कातन्त्रयाकरणम् [रूपसिद्धि] १. उखामत् । उखानस् + सि | "यानाच" (२।१।४९) से सिप्रत्यय का लोप, प्रकृत सूत्र द्वारा सकार को दकार तथा "बा विरामे" (२ । ३ । ६२) से दकार को तकारादेश। २. उखासद्भ्याम् । उखानुस् + भ्याम् । प्रकृत सूत्र द्वारा सकार को दकारादेश | ३. उखासत्कल्पः। उखानस् + कल्प +सि । ईषदसमाप्तः उखासत् । "ईषदसमाप्ती कल्पदेश्यदेशीयाः" (२।६।४०-४) से कल्पप्रत्यय, प्रकृतसूत्र द्वारा सकार को दकार, "अघोषे प्रथमः" (२।३।६१) से द् को त्, 'उखासत्कल्प' की लिङ्गसंज्ञा, सिप्रत्यय तथा "रेफसोर्विसर्जनीयः" (२।३।६३) से स् को विसगदिश | ४. पर्णष्वत् । पर्णध्वस्+ सि । “व्यानाच्च" (२।१।४९) से सिलोप, प्रकृत सूत्र से स् को द् तथा "वा विरामे" (२।३।६२) से द् को त् आदेश । ५. पर्णवद्भ्याम् । पर्णध्वस् + भ्याम् । प्रकृत सूत्र से सकार को दकारादेश । ६. पर्णवद्देश्यः। पर्णध्वस् + देश्य + सि |ईषदसमाप्तः पर्णध्वत् । “ईषदसमाप्ती कल्पदेश्यदेशीयाः"(२।६।४०-४) से 'देश्य' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से सकार को दकार, लिङ्गसंज्ञा (पर्णध्वद्देश्य), सिप्रत्यय तथा "रेफसोर्विसर्जनीयः"(२।३।६३) से सकार को विसगदिश ।।२६६। २६७. हशषछान्तेजादीनां डः [२।३।४६] [सूत्रार्थ] विराम के विषय में तथा व्यञ्जनादि प्रत्यय के परे रहने पर 'ह्-श् -ए - छ्' वर्ण जिनके अन्त में हों या यज् आदि धातुएँ जिनके अन्त में हों- ऐसे लिङ्गों के अन्तिम वर्ण को डकारादेश होता है ।।२६७। [दु० वृ०] ह-श-ष-छान्तानां यजादीनां च लिङ्गानामन्तस्य विरामे व्यञ्जनादिषु च डो भवति । मधुलिट्, मधुलिड्भ्याम्, मधुलिट्पाशः । सुविट्, सुविड्भ्याम्, सुविट्तरः । षट्, षड्भिः, षट्त्वम् । शब्दप्राट्, शब्दप्राड्भ्याम्, शब्दप्राट्त्वम् । देवेट, देवेड्भ्याम्,
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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