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________________ नामचतुष्टयाध्याये द्वितीयः सखिपादः ३३९ ननु ‘ष्णान्ताः संख्या अलिङ्गकाः' इत्यत्र कथम् इकारो न स्यात् ? सत्यम् । के प्रत्यय इत्यत्र स्वीकृताकारे इति कृते सिध्यति किं परग्रहणेनेति तज्ज्ञापयति - स्त्रीकृताकारमात्रं यत् परस्मिंस्तत्रैवास्य विषयः । अत्र हि लिङ्गशब्दात् स्वार्थे कप्रत्यये न विद्यते लिङ्गकम् आसामिति विग्रहे तदन्ताद् आप्रत्ययः ।।२२१ । ॥ इति सुषेणवियाभूषणकृते कलापचन्द्रे नाम्नि चतुष्टये द्वितीयः सखिपादः समाप्तः॥ [समीक्षा] 'सर्वक + आ, उष्टक + आ, पाचक + आ, पाठक + आ' इस अवस्था में 'क' से पूर्ववर्ती अकार के स्थान में इकारादेश करके कातन्त्रकार तथा पाणिनि दोनों ही 'सर्विका, उष्टिका, पाचिका, पाठिका' शब्दरूप सिद्ध करते हैं । पाणिनि का सूत्र है – “प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्यात इदाप्यसुपः" (अ० ७।२।४४) । [रूपसिद्धि] १. सर्विका । सर्व + अक्+ आ | "स्त्रियामादा" (२।४।४९) से स्त्रीलिङ्ग में 'आ' प्रत्यय, “अव्ययसर्वनाम्नः स्वरादन्त्यात् पूर्वोऽक् कः"(२।२।६४) से अक् प्रत्यय, "समानः सवर्णे दीर्धीभवति परश्च लोपम्" (१।२।१) से ककारोत्तरवर्ती अकार को दीर्घ, आकार का लोप, प्रकृत सूत्र से अकार को इकारादेश तथा विभक्तिकार्य । २. उष्ट्रिका | उष्ट् + क + आ | पूर्ववत् स्त्रीलिङ्ग में 'आ' प्रत्यय, कप्रत्यय, दीर्घ, आकारलोप, प्रकृत सूत्र से अकार को इकारादेश तथा विभक्तिकार्य । ३. पाचिका | पच् + वुण् = पाचक + आ । 'पच' धातु से वुण्प्रत्ययान्त निष्पन्न 'पाचक' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में 'आ' प्रत्यय, समानलक्षण दीर्घ, आकारलोप, प्रकृत सूत्र से अकार को इकारादेश एवं विभक्तिकार्य । ४. पाठिका । पठ् + वुण् = पाठक + आ । 'पठ्' धातु से वुण्प्रत्ययान्त निष्पन्न 'पाठक' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में 'आ' प्रत्यय, समानलक्षण दीर्घ, आकारलोप, प्रकृत गृत्र से अकार को इकारादेश एवं विभक्तिकार्य ।। २२१ । ॥ इत्याचार्यशर्ववर्मविरचिते कातन्त्रव्याकरणे नामचतुष्टयात्मके द्वितीयाध्याये समीक्षात्मको द्वितीयः सखिपादः समाप्तः॥
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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