________________
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
काल की बहुत सी प्रान्तीय बोलियों से ली गई हैं, इसे हम प्रारम्भिक प्राकृत कहते हैं। कुछ विद्वानों ने इन देशी शब्दों को परिनिष्ठित या वैदिक संस्कृत से उत्पन्न मानकर, इन्हें तद्भव कहा है जो कि वस्तुतः बड़ी कठिनाई से, इन दोनों में इसकी समता पाई जा सकती है।
(3) तीसरा उन लोगों का यह कहना है कि प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत से नहीं मानी जा सकती क्योंकि बहुत से शब्द
और अभिव्यक्तियाँ प्राकृत की ऐसी हैं जो कि संस्कृत में नहीं पाई जातीं किन्तु वे केवल वैदिक संस्कृत में ही मिलती हैं।
(4) चौथा कुछ लोगों का यह मत है कि हम प्राकृत को वैदिक संस्कृत से भी उत्पन्न नहीं मान सकते क्योंकि वैदिक संस्कृत के बहुत से ऐसे शब्द और उच्चारण हैं जो कि प्राकृत में पाए जाते हैं और उसी तरह प्राकृत के भी बहुत से रूप और शब्द ऐसे हैं जो कि वैदिक संस्कृत में भी पाए जाते हैं। तालु दन्त्य के लिए कृत=कड, वृत बुड, मृत मड। दन्त्य न मूर्धन्य ण में परिवर्तित हो जाता है जबकि ए और र पूर्व में हो- उष्ण, ऋण आदि या दन्त्य ध्वनि स् मूर्धन्य ध्वनि ष् में परिवर्तित हो जाती है। दन्त्य के स्थान पर मूर्धन्य में परिवर्तित हो जाने की प्रवृत्ति वैदिक और लौकिक संस्कृत में देखी जाती है। यह बताता है कि उस समय प्रारम्भिक प्राकृत भी थी जिसका कि यह प्रभाव है। प्राकृत के बहुत से ऐसे शब्द हैं जो कि वैदिक संस्कृत में नहीं पाए जाते उदाहरणस्वरूप देशी शब्द और संस्कृत के बहुत से रूप और शब्द ऐसे हैं जो कि प्राकृत में नहीं पाये जाते।
(5) पाँचवा यह कहना है कि वैदिक संस्कृत और प्राकृत में भिन्नताएँ होते हुए भी दोनों में बहुत कुछ समता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि वैदिक संस्कृत और प्राकृत (शिलालेखी प्राकृत) का सम्बन्ध भगिनि--बहन (Sister language) का सा है जो कि विभिन्न प्रान्तीय वैदिक बोलियों से या प्रारम्भिक प्राकृत