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अव्यय
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(5) सम्बन्ध वाचक
विद्वानों ने इसेदो भागों में विभक्त किया है-(क) समान वाक्य संयोजक और (ख) आश्रितवाक्य संयोजकं । समानवाक्य संयोजक के चार भेद किए गए हैं,-(1) समुच्चयबोधक, (2) प्रतिषेधक, (3) विभाजक और (4) अनुकरणात्मक।
संस्कृत अपरं का अपभ्रंश में अवरं > हि० और होता है। समं का सम्व एवं समणु रूप होता है। 8/4/418–प्रतिषेधक संयोजक परं का पर होता है। अपि का वि और पुनः का पुणु होता है। निश्चयात्मक 'ध्रुव' का 'ध्रुवु' होता है। निषेधात्मक मा का मं, न का ण तथा मनाक का मणाउ होता है। संस्कृत किम् सर्वनाम का 'किं या 'कि' भी अव्यय के लिये कभी कभी प्रयुक्त होता है जो कि प्रायः प्रश्नात्मक हुआ करता है। हेम० 8/4/417 अपभ्रंश तथा हिन्दी में भी अनुकरणात्मक सम्बन्ध-वाचक अव्यय का प्रयोग 'तो' से होता है जो कि संस्कृत 'ततः' या 'तदा' से बना है।
जइभग्गा पारक्कडा तो सहिमज्झ पिएण।
अहभग्गा अम्हं तणा तो तें मारिअडेण।। आश्रित वाक्य संयोजक रूप जिम, तिम, जिवँ, तिव, जेम, तेम, जेव, तेवँ इत्यादि। (6) विविध
8/4/413-संस्कृत अन्यादृश शब्द का अपभ्रंश में अन्नाइसो और अपर सदृश शब्द की जगह अवराइसो होता है।
... 8/4/414 प्रायस शब्द के स्थान पर अपभ्रंश में प्राउ, प्राइव, प्राइम्व एवं पग्गिम्व रूप होता है।
_8/4/415 अन्यथा शब्द के स्थान पर अन्नु और अन्नह का प्रयोग होता है।