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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
तहि सारिक्खु"। इन रूपों के साथ साथ हो प्रत्यय वाला रूप भी मिलता है-जेत्थहो (=जत्थहो), तेत्थहो आदि। .
(ख) इह (षष्ठी का रूप) जहिँ, तहिं, कहिं, सर्वनाम सप्तमी का रूप अव्यय की तरह प्रयुक्त होता है।
- (ग) अत्त प्रत्यय लगाने से रूप जत्तु, जेत्तु, तत्तु तथा तेत्तु रूप होता है। इसी के साथ कभी कभी 'हे' प्रत्यय जोड़कर भी रूप होता है-ऐत्तहे, जेत्तहे, तेत्तहे, केत्तहे इत्यादि। इन शब्दों का क्रम से हिन्दी अर्थ होगा = जहाँ, तहाँ, कहाँ एवं यहाँ इत्यादि जो कि किसी निर्दिष्ट स्थान की सूचना देते हैं। (3) काल वाचक
(क) संस्कृत यावत् एवं तावत् शब्द के 'व' अक्षर के स्थान पर म, उं, एवं महिं रूप पाया जाता है-8/4/406। जाम, ताम, जाउँ, ताउँ, जाव, ताव, जा, ता, जामहिं, जावहिं, तामहि, तावहिं, जव्वे, तव्वे । जेम, तेम रूप भी मिलता है।
(ख)-तो (ततः) जो (यतः)
इन रूपों का हिन्दी अर्थ जब तक, तब तक होता है। (4) परिमाण वाचक
हेम० 8/4/407 अपभ्रंश में संस्कृत यावत् एवं तावत् शब्द को विकल्प से ‘एवडु' एवं 'एत्तुल' आदेश होकर रूप जेवडु, जेत्तुल एवं तेवडु, तेत्तुल रूप होता है। इन रूपों का वर्णन सार्वनामिक विशेषण के समय किया जा चुका है। ये रूप वस्तुतः विशेषण में ही प्रयुक्त होते हैं। इन उदाहरणों के अतिरिक्त हेमचन्द्र के दोहों में कुछ और दूसरे रूप भी मिलते हैं 8/4/391-इत्तउं ब्रोप्पिणु सउणि ठि3; 8/4/341एत्तिउ-संस्कृत इयत्, 8/4/395-तेत्तिङ संस्कृत तावत्, तेवडु, संस्कृत तावान्।