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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
प्रथम पुरुष, एक वचन पुल्लिंग-महार, महारउ
स्त्री०-महारि (< * मह-* कारी); हमार, °रि; मेर (<* म-केर), मेरी (<* म-केरी)
ब० व०-अम्हारय, अम्हारआ, अम्हारी (<अस्म-कार-क °कारी) द्वितीया, ए० व०-तुहार, तुहारअ, तुहारऊ, (तुह * कार) तेरउ, स्त्री०-तेरी (< त्व > त केर, ० केरी)
सर्वनामों के जिन रूपों के अन्त में ईय लगता है, उनमें से मईअ < मदीय का उल्लेख हेमचन्द्र ने 2, 147 में किया है। इन रूपों के स्थान में नहीं तो केर, केरअ और केरक काम में लाये जाते हैं (तुम्हकेरो < युष्मदीयः, अम्हकेरो < अस्मदीयः) कार्य का * कार < आर रूप बना और इससे अप० में महार और महारउ < * महकार बना। यह सम्बन्ध कारक एक वचन मह+कार से बना है। इसका अर्थ मदीय है। इसी भाँति तुहार < त्वदीय, अम्हार < अस्मदीय है। अप० में हमार छन्द की मात्रा ठीक करने के लिये हम्मार रूप इसी अम्हार से बना है। यह रूप * म्हार से * महार और इसी से हमार भी बना है। अप० रूप तोहर < युष्माकं, * तोहार के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है। तुम्हार, * तो म्हार, तोहार और तोहार रूप भी पाया जाता है। हेमचन्द्र के अनुसार तुम्ह और अम्ह शब्द के आगे हार प्रत्यय लगाकर तुम्हार, तोहार और हमार शब्द बना है।
संदर्भ 1. डॉ० प्रबोध बेचरदास पण्डित-प्राकृत भाषा पृ० 51 2. हिन्दी साहित्य का बृहत इतिहास पृ० 332 प्रकाशन-नागरी प्रचारिणी
सभा, काशी। 3. पिशेल प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृ० 503 | 4. . हिस्टॉरिकल ग्रामर आफ अपभ्रंश पृ० 27---इन्ट्रोडक्शन से।