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रूप विचार
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(ख) एत्तुलो, जेत्तुलो, केत्तुलो, तेत्तुलो, (हेम० 8/4/435), पुरानी राजस्थनी में एतलउ, जेतलउ, तेतलउ, केतलउ । गुजराती में एटलो, जेटलो आदि। हिन्दी में इतना, तितना, कितना, उतना।
(ग) एवडु, जेवडु, < सं० * अयवड्रकः, * ययवड्रकः = (हे० 8/4/407)-'जेवडु अन्तरु रावण-रामहँ तेवडु अन्तरु पट्टण-गामहँ। (हेम० 8/4/408) 'एवडु अन्तरु' केवडु अन्तरु' हिन्दी इतना, उतना कितना, जितना। (2) गुणवाचक विशेषण
___ जइसो, जेहु-जैसा; कइसो, केहु-कैसा; तइसो, तेहु-तैसा; अइसो, एहु-ऐसा।
___ "उक्ति व्यक्ति प्रकरण' में इसके अस और ऐसे दोनों प्रकार के रूप मिलते हैं। को कस इहाँ (32/1), कैसे काह करत (32/1) अइस प्रत्यय के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने 8/4/402) एहउ वाले रूपों का भी उल्लेख किया है केहउ मग्गण एह आदि। (3) सम्बन्ध वाचक विशेषण
___ एरिस-हिन्दी ऐसा-इसकी व्युत्पत्ति एतादृश >* एआरिस > एरिस के क्रम से हो सकता है। एरिसं, एरिस, एरिसि, एरिसिअ, एरिसिअं, एरिसही (= एतादृशैः); सं० एतादृक्, एतादृश > म० भा० आ० एदिस-एइस > हि० ऐस, ऐसा।
हमारिस-हि० हमारे जैसा, मादिस, मारिस < मादृश, अम्हारिस < हम्हारिस < अम्हादिस < अस्मादृश। .
तुम्हारिस-तुम्हारे जैसा। हमार, महार, महारउ, तुम्हार, तुम्हारउ।
इस सम्बन्ध वाचक विशेषण में आर, आरअ, स्त्री० एरि प्रत्यय लगा है। यह षष्ठी रूप म० भा० आ० के * कार, * कारि, < कार्य से व्युत्पन्न प्रतीत होता है। यह वस्तुतः परसर्ग केर, केरअ < प्रा० भा० आ० कार्य है।