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अपभ्रंश और देशी
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जैसा पहले लिखा जा चुका है, कुछ देशी शब्द आर्येतर भाषाओं के हैं। किंतु इससे यह अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि देशी शब्द आर्येतर ही हैं। बहुत संभव है कि देशी शब्द, जिनकी व्युत्पत्ति का अनुमान प्रायः संस्कृत शब्दों से नहीं किया जा सकता, विभिन्न देशी भाषाओं से आए हों। यह संभव हो सकता है कि वे शब्द मूल प्रारंभिक आर्यों के प्रांतीय शब्द रहे हों, जो आधुनिक आर्यभाषाओं में इस प्रकार से घुल मिल गए हैं कि उनका पता लगाना असंभव सा प्रतीत होता है। संस्कृत में कोई भी देशी शब्द की चर्चा नहीं करता क्योंकि संस्कृत तो 'मध्यदेश' की भाषा से अभिवृद्ध हुई थी। वही बाद में शौरसेनी के साहित्यिक रूप में सुरक्षित रही। इसी बात को थोड़ा सा परिष्कृत रूप देकर श्री सेठ हरगोविंददास ने कहा है कि वैदिक और लौकिक संस्कृत भाषा पंजाब और मध्यप्रदेश में प्रचलित वैदिक काल की प्राकृत भाषा से उत्पन्न हुई। पंजाब और मध्यप्रदेश के बाहर । के अन्य प्रदेशों में उस समय आर्य लोगों की जो प्रादेशिक प्राकत भाषाएँ प्रचलित थीं उन्हीं से देशी शब्द गृहीत हुए हैं। यही कारण है कि वैदिक और संस्कृत साहित्य में देशी शब्दों के अनुरूप कोई शब्द (प्रतिशब्द) नहीं पाया जाता है। पिशेल महोदय का भी यही कथन है कि देशी शब्दों में ऐसे शब्द भी आ गए हैं जो स्पष्टतया संस्कृत मूल तक पहुँचते हैं किंतु उनका संस्कृत में कोई ठीक-ठीक अनुरूप शब्द नहीं मिलता, वे भी देशी शब्दों में संकलित कर लिए गए हैं।
__इस प्रकार अगर किसी देशी शब्द की व्युत्पत्ति का पता आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के प्रारंभिक शब्दों से नहीं चलता और अगर उन्हीं शब्दों का पता आर्येतर भाषाओं के परवर्ती साहित्य में लंग जाता है तब भी कोई अन्तिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता और देशी शब्दों के विषय में अंतिम सैद्धांतिक2 मत की स्थापना नहीं की जा सकती। देशी नाममाला में कुछ 3978 देशी शब्द हैं जिनकी निम्नलिखित श्रेणियाँ हैं :