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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
तत्सम
100
उपेक्षित तद्भव
1850
संदेहास्पद तद्भव
528
देशी
1500
कुल योग
3978
1500 देशी तद्भव नहीं मालूम पड़ते । प्रो० मुरलीधर बनर्जी का कहना है कि इनमें 800 शब्द आधुनिक भारतीय वार्नाक्युलर भाषा कुछ परिवर्तन के साथ पाए भी जाते हैं । ये आदिम आर्यों के मूल शब्द हैं, अवशिष्ट 700 देशी आर्येतर मूल शब्दों से संबंधित हो सकते
में
हैं ।
क्या देशी ही अपभ्रंश भाषा थी ?
कुवलयमालाकहा में जिन 18 देशी भाषाओं का वर्णन आया हे उसे एल० बी० गांधी महोदय ने अपभ्रंश के अंतर्गत ही संनिविष्ट किया है । रुद्रट 34 ने काव्यालंकार में देशविशेष के भेद से अपभ्रंश के बहुत से भेद किए हैं। विष्णुधर्मोत्तर में भी कहा गया है कि देशों में विभिन्न प्रकार के जो भेद पाए जाते हैं, उन्हें लक्षण के द्वारा नहीं बताया जा सकता । अतः लोक में जिसे हम अपभ्रष्ट कहते हैं उसी को देशी कहना चाहिए। वाग्भट 36 ने अपभ्रंश को विभिन्न देश की भाषा माना है । यही बात रामचंद्र और गुणचंद्र " ने भी कही है। आधुनिक काल में डॉ० हीरालाल जैन ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वस्तुतः देशी भाषा और अपभ्रंश भाषा एक ही है। अपनी बात की पुष्टि में उन्होंने कीर्तिलता का यह पद उद्धृत किया है :
देसिल बअना सब जन मिट्ठा ।
तैं तैसन जम्पत्रो अवहट्ठा ।।
इसमें वर्णित 'देसिल वअना' और 'अवहट्ट' को उन्होंने एक ही भाषा से संबंधित माना है । यद्यपि इस मत पर डॉ० ज्यूल्स व्लॉख ने