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________________ मेरे को घणीवार मिल्या छे । मेरे साथ चरचा वारतातो होइ छ । परंतु कदे मेंने उसको अविनय का वचन बोल्या नही । उनाने कदे मेरे को अविनय का वचन बोल्या नही । सरद्धांनतो दृष्टी अनुसारे जीवा की होवे छे । इम जाणि जौणसा वचन दुजे पासो सुण्या होवे ते वात इकांत साची न मानणी । कोइ साचा पुरुष कहेतो साची जाणनि । नहि तो केवली महाराज जाणे । ___ इस काल में अधिकी या 'उछी या वाता जगत में घणा लोक कहेछे । लोकाकी या वाता सुणके ज्ञानी जीव को कीसे के साथ राग द्वेष करनां जोग नथी । तथा कोइ प्रत्यक्ष अवगुणवाद बोले तोपिण वीतराग की आज्ञा एहि छे-समता भाव रखणां । सर्व जीव का हीत वांछणां । कर्मी के वस जीव क्या क्या कर्म नही करता । अपितु सर्व करे छे । जब उसको समकीत का अंग जागेगा तो सर्व आपेहि निंद्येगा इत्यादिक बात घणी छे । लिखणे में नही आमदी । वीचारवा जोगछे । पिण ज्ञान विना न जणाय । इत्यादिक घणी निंद्या करणे लागा । अरुमें तो अंबरसर में चरचा करके लाहोरकों वीहार कर दीया । मैंने तो विचारया सरधातो एह चंगी हे । परंतु मेरा पखी कोइ नहि इस वास्ते मेरे को खोटी सरदा रखणी तथा परुपणी योग नही । परंतु क्या करूं ? में इनांके साथ वाद करके कीम जीतांगा ? मेरे को धर्म पालणा दुस्कर होय जावेंगा । यतितो क्रिया हीन हे । जिम इहां क्रियाहीन हे तिम सारे क्रिया हीण होवेगे । परंतु मेरे को संवेगीयाकी कुछ खबर नही थी । इम जाणी में कुछ परुपणा करी नहि । "कुजरावाले में मैंने चौमासा कीया परंतु मुखपत्ती तथा प्रतिमाजी की कुछ परुपणा करी नहि । अरु अंबरसिंघजीने अमरसर चौमास करके मेरे उपर चढाइ करी पसरुर मध्ये आया । अरु 'कुजरावालें का भाइ गंडा पसरुर में गया था । ___ उसको अंबरसिंघने पुण्या-तुम्हारे सहर कीसे साधु का चौमासा था ? उसने कह्या-बुटेराय का चौमासा था । फेर अंबरसिंघने पुछ्या-बुटेराय केसाक साधु हे ? oभाइनें कह्या-अछा साधु हे । क्रिया पात्र हे । अरु पढ्या होयाबी अछाहे । फेर अंबरसिंघ ने कह्या - भाइ तेरे को उसकी खबर नहि १ ओछी । २ आती । ३ पक्ष का । ४ गुजरानवाले । मोहपत्ती चर्चा * ८
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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