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________________ विचरना जोग नथी । श्री गौतमस्वामी के मुख को मुखपत्ति बंधी होइ नही । फेर मेंने अंबरसिंघजी को पाठ दीखाया । अमरसिंघजी मेरे को कह्या एह पाठ स्वामी रामलाल को दिखालो । फेर मैनें पाठ रामलालकुं दिखाया । पाठ देख के रामलालजी बोले ! बूटेरायजी साधु के मुख को मुखपत्ति बांध होई । ना होवे तो साधु कीस का ? ते तो यति थइ जावे । एह बात सुण के मेंनें मन में विचारया - इसने मेरे को सूत्र का उत्तर नहि दीया । इसने आणि मत कल्पणा की बात कहि हे । इहां मेरे को मुखपत्ति मुख को नही बंधणी 'एतला देव गुरु परसादे ज्ञान अंस जाग्या । परंतु में इसका निरना करूंगा पीछे जीम देखुंगा तिम करूंगा । चोमासा दिल्ली में करके फेर पट्याले के देस में गया । उहां चोमासा करके फेर मे अंबरसर आया । फेर स्यालकोट गया । फेर रावलपींडि गया । उहांते आवीने कुंजरावाले चौमासु करी चौमासु उठे फेर पट्यालेको गया । रस्ते में अमरसिंघ मील्या । मेरे को कह्या-बुटेरायजी ! तुम हम इकठे विचरांगे । हमारा तुमारा टोला एक हे ! मैने कह्या- अछी बात है । हम मील के दोनो अंबरसरजी गये । तिहां मेरी अरु अमरसिंघ की चरचा होइ मुखपत्ति की तथा प्रतिमा की । परंतु सारी पंजाब मे बावीस टोल्या का मत फेल रह्या था । अरु अंबरसर मे तो घणा । अंबरसिंघकाहि परिवार था । मेरी सरदा खोटी जाणी ने मेरे पासों अंबरसिंघ विहार कर गया परंतु मुखपत्ति बंधणे की तथा प्रतिमा की घणी खेच करणे लागा । अरु लोकां को कहणे लागा - बुटेराय की सरदा महा खोटी हे । उसकी प्रतिमा मानने की सरद्धा हे । हमारे पूर्वे हरीदास तथा मलुकचंदादिक आचार्य होय हे । जिना ने धर्म विछेद गय होय को फेर चारित्र अंगीकार करके वीतराग का धर्म प्रगट कया था । एसे पुरुषां को बुटेराय निन्हव तथा अणलिंगी पखंडी सरदता है । अरु मेंने उसकी या दोनो सरदा छुडाय देणीया है । नहि छोडेगा तो मे उसका वेष खोसाय लेवांगा । घणी निंद्या मेंने लोका की जबानी सुणी छे । परंतु मेरे ते दीक्षा में छोटा छे । टोले की अपेक्षा सो अमरसिंघजी I इतना । २ पास से । आगे भी ऐसा जानें । ३ अन्यलिंगी पाखण्डी । १ मोहपत्ती चर्चा * ७
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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