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जैन समाज ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जैन समाज के कई कार्यकर्ताओं ने प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में भाग लिया। इन जैन कार्यकर्ताओं में सहारनपुर के बाबू अजित प्रसाद जैन, देवबन्द की श्रीमती लेखवती जैन, मुजफ्फरनगर के सुमत प्रसाद जैन, बिजनौर के बाबू रतन लाल जैन, नेमिशरण जैन, आगरा के सेठ अचल सिंह जैन, बनारस के बाबू अमोलक चन्द जैन आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
महात्मा गाँधी ने रौलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड एवं ब्रिटिश सरकार के विभिन्न अत्याचारों से त्रस्त होकर देश में 'असहयोग आन्दोलन' का आह्वान किया। असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के अंतर्गत रचनात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों का समन्वय किया गया। रचनात्मक कार्यक्रमों के अंतर्गत देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता, अहिंसा, सत्याग्रह, अछूतोद्धार एवं स्वदेशी का प्रचार किया गया। नकारात्मक कार्यक्रमों के अंतर्गत देश की जनता ने सरकारी कॉलेजों, परिषदों एवं न्यायालयों का बहिष्कार किया।
असहयोग आन्दोलन के दौरान जैन समाज का एक बड़ा सम्मेलन अहमदाबाद में हुआ, जिसमें पूरे भारत के जैन समाज ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। इस सम्मेलन में ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सम्मेलन में शामिल होकर जैन समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में अपनी उपाधियों को त्याग दिया तथा संकल्प लिया कि वे देश को अंग्रेजी सरकार से मुक्त कराने में अपना पूर्ण सहयोग देंगे। इस सम्मेलन का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन दैनिक समाचार पत्र 'आज' ने इसे प्रमुख रूप से प्रकाशित किया तथा सम्मेलन के उन महत्वपर्ण प्रस्तावों को अलग से प्रकाशित किया. जो कि जैन समाज ने पास किये थे।
उत्तर प्रदेश के जैन समाज ने असहयोग आन्दोलन में रचनात्मक एवं नकारात्मक दोनों कार्यक्रमों में भाग लेकर अंग्रेजी सरकार का विरोध करने में अहम भूमिका निभाई। रचनात्मक कार्यक्रमों के अंतर्गत जैन समाज ने स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार-प्रसार में पूरी लगन के साथ कार्य किया। 'अहिंसा' के सिद्धान्त को मानने वाले इस समाज के काफी कार्यकर्ताओं ने इस आन्दोलन के तहत अपनी विभिन्न उपाधियों को त्याग दिया। मुजफ्फरनगर के सुमतप्रसाद जैन, सहारनपुर के बाबू झुम्मनलाल जैन, बिजनौर के बाबू रतनलाल जैन, आगरा के बाबू चाँदमल जैन आदि ने अपनी वकालत छोड़ दी। जैन संत महात्मा भगवानदीन ने अपनी स्टेशनमास्टरी की सरकारी नौकरी को छोड़कर हस्तिनापुर में गुरुकुल कांगड़ी की तर्ज पर चल रहे ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम में छात्रों को देशभक्ति के लिए तैयार किया और अंग्रेजी सरकार से जमकर लोहा लिया। 1918 में राजनैतिक कैदी के रूप में बिजनौर जेल में बंदी रह चुके भगवानदीन जी ने सरकार द्वारा कैदियों के साथ मामूली डाकुओं जैसा बर्ताव
निष्कर्ष :: 211