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________________ जिक्र महाप्रज्ञ ने किया-1. उपदेश हृदय-परिवर्तन, 2. मौन 3. एकांत में चले जाना। 60 हिंसा और अहिंसा के संदर्भ में यह बहुत उपयुक्त कथन है। अहिंसा का विकास इसकी मर्यादा में रहकर ही किया जा सकता है। अहिंसा के फलितार्थ जिस प्रवृत्ति से अहिंसा का विकास हो, परिणाम नजर आये वही प्रक्रिया अहिंसा के फलितार्थ की द्योतक वनती है। गांधी के शब्दों में जहाँ अहिंसा है, वहाँ अपार धीरज, भीतरी शान्ति, भले-बुरे का ज्ञान, आत्म त्याग और सच्ची जानकारी भी है। इस संदर्भ में अहिंसा के फलितार्थ का जो उल्लेख आचार्य महाप्रज्ञ ने किया ज्ञातव्य है. अहिंसा का अर्थ प्राणों का विच्छेद न करना-इतना ही नहीं, उसका अर्थ है-मानसिक, वाचिक एवं कायिक प्रवृत्तियों को शुद्ध रखना। . जीव नहीं मरे, बच गए यह व्यवहारिक अहिंसा है, अहिंसा का प्रासंगिक परिणाम है। हिंसा के दोष से हिंसक की आत्मा बची-यह वास्तविक अहिंसा है। हिंसा और अहिंसा का संबंध हिंसक और अहिंसक से होता है, मारे जाने वाले और न मारे जाने वाले प्राणी से नहीं। निवृत्ति अहिंसा है। प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है, उनमें जो राग-द्वेष रहित होती है, वह अहिंसा और राग द्वेष युक्त होती है, वह हिंसा है। . अहिंसा का संबंध जीवित रहने से नहीं, उसका संबंध तो दुष्प्रवृत्ति की निवृत्ति से है, निवृत्ति एकांतरूप में अहिंसा है-यह तो निर्विवाद विषय है पर राग, द्वेष, मोह, प्रमाद आदि दोषों से रहित प्रवृत्ति भी अहिंसात्मक है। 62 निर्दोप प्रवृत्ति का मार्गदर्शन शिष्य की जिज्ञासु चेतना का प्रतीक है-'प्रभो! कृपा करके आप बताएँ कि हम कैसे चलें, कैसे खड़े हों, किस तरह बैठें, किस तरह लेटें, कैसे खाएँ और किस तरह बोले, जिससे पाप-कर्म का बंधन न हो। इसे समाहित करते हुए गुरु ने कहा-'आयुष्यमान! यतना पूर्वक चलने से, यतनापूर्वक खड़े होने से, यतनापूर्वक बैठने से, यतनापूर्वक लेटने से, यतनापूर्वक भोजन करने से और यतनापूर्वक बोलने से पाप कर्म का बंध नहीं होता।163 सारांशतः सत्पुरुषों का खाना, पीना, चलना, बैठना आदि जीवन क्रियाएँ जो अहिंसा पालन की दृष्टि से सजगतया की जाती है; वे सब अहिंसात्मक ही हैं। अहिंसा की फलश्रुति का नवनीत है-आत्म-तुला का विस्तार। सर्व प्रथम व्यक्ति पारिवारिक सदस्य को अपने समान समझने लगा। क्रमशः अपनी जाति, समाज, प्रान्त और राष्ट्र के व्यक्तियों को। अगले चरण में मानव-मानव भाई-भाई का स्वर गूंजा। अन्तिम चरण में प्राणीमात्र समान हैं, यह बुद्धि में समा गया। अहिंसा एकः तदर्भ अनेक में विभिन्न विषयों का विमर्श अहिंसा के अर्थगाम्भीर्य को व्यापक स्तर पर, विभिन्न कोणों से समझने हेतु किया गया आयास है। 78 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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