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________________ भिन्न पड़ जाता है क्योंकि सामाजिक दृष्टि में प्रवृत्ति का महत्त्व है। धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टिभेद का उल्लेख महाप्रज्ञ ने किया-धर्म का प्रवर्तन आत्मशुद्धि के लिये हुआ-ऐसे विचार वालों के लिए अहिंसा अमर्यादित धर्म है। वे अहिंसा को उपयोगिता या आवश्यकता के बाटों से नहीं तौलते। वे उसे संयम की तुला से तौलते हैं। सचमुच ही अहिंसा समाज के अभ्युदय के लिये ही प्रवृत्त हुई होती तो उसकी मर्यादाएँ इतनी सूक्ष्म नहीं बनती। समाज निरपेक्ष बनकर भी वह विकसित नहीं होती। 57 इस मंतव्य से स्पष्ट होता है कि अहिंसा का लक्ष्य विशुद्ध आध्यात्मिक विकास रहा और गौण रूप से सामाजिक अभ्युदय स्वतः होता रहा। अहिंसा का विराट् क्षेत्र अहिंसा के विराट् क्षेत्र का आशय है इसकी पहुँच कहाँ तक जाती है? प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा गया-'अहिंसा सब प्राणियों के लिए कल्याणकारी है।' यह जितनी कल्याणकारी है, उतनी ही विराट है। इसकी विराट्ता की पुष्टि में महाप्रज्ञ ने आर्ष वाणी को उद्धृत किया-'अहिंसाभूतानं ब्रह्म परमं'-अहिंसा प्राणियों के लिए ब्रह्म है। अहिंसा कल्याणकारी भी है, विराट भी है और शाश्वत भी है। ‘एस धम्मे धुए नियए सासए'-अहिंसा धर्म ध्रुव, नित्य और शाश्वत है। शाश्वत के विषय में मीमांसा करना कठिन होता है। अहिंसा शब्द व्यापकता का प्रतीक है। इस शब्द में संपूर्ण संसार का हित समाहित है। इसका प्रभाव किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष पर नहीं बल्कि संपूर्ण संसार पर है। अहिंसा की विराट्ता का उल्लेख करते हुए गांधी ने लिखा-अहिंसा जगत् का एक महान् सिद्धांत है। उसे कोई मिटा नहीं सकता। मेरे जैसे हजारों के उस पर अमल करते-करते मर जाने से वह सिद्धांत मिट नहीं सकता। मर कर ही अहिंसा का प्रचार बढ़ेगा।58 इस कथन में अहिंसा की ध्रुवता का निदर्शन है। अहिंसा की मर्यादा अहिंसा का मार्ग प्रतिस्रोत गामी है एवं गति ऊर्ध्वारोही है। इसकी पुष्टि गांधी के कथन से होती है। उन्होंने कहा बुराई का बदला भलाई से चुकाना चाहिए। अहिंसा की तालीम लेनी होती है और उसे बढ़ाना पड़ता है। उसकी गति ऊपर को होती है इसलिए उसको ऊँची से ऊँची चोटी तक पहुँचने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। अहिंसा अनुभव से मंजे हुए आदमी को ही चुनती है। 59 अपने कथन का स्पष्टीकरण किया-अहिंसा तो एक सर्वदेशीय सिद्धान्त है। प्रतिकूल परिस्थिति उसकी क्रिया को किसी सीमा के अन्दर बांध नहीं सकती। विरोध में और विरोध के होते हुए भी वह अपना काम करती रहती है। क्षेत्र विशाल होने पर भी अहिंसा की अपनी कुछ सीमाएं-मर्यादाएँ भी हैं। येन-केन प्रकारेण अहिंसा कोल ो लाग नहीं किया जा सकता। इसमें बल-प्रयोग को कहीं स्थान ही नहीं है। जहाँ भी अहिंसा में भय या प्रलोभन आ गया, वहाँ एक नया व्यापार शुरू हो गया। अतः इस बात पर विशेष बल दिया गया कि-'प्रलोभन न दे-एक व्यक्ति ने कहा-बकरे को मत मारो, पचास रुपये दूंगा। उस व्यक्ति ने उसे न मारना स्वीकार कर लिया। उसे पचास रुपये मिल गए। अब वह रोज ज्यादा बकरे लाने लगा। यह एक नया व्यापार हो गया।' इस कथन से प्रकट होता है कि जहाँ भी भय-प्रलोभन का प्रयोग होता है, वहाँ हिंसा के नये-नये रूप दिखाई देते हैं। अहिंसा की मुख्य तीन मर्यादाओं का अहिंसा एक : संदर्भ अनेक / 77
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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