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________________ होता है। एक सत्यांश के साथ लगे अनेक सत्यांश को ठुकराकर कोई उसे पकड़ना चाहे तो वह सत्यांश भी उसके सामने असत्यांश बनकर आता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दसरों के प्रति ही नहीं किंतु अपने विचारों के प्रति भी अन्याय मत करो। अपने को समझने के साथ-साथ दूसरों को भी समझने की भी चेष्टा करो। यही है अनेकांत दृष्टि, यही है अपेक्षावाद और इसी का नाम है-बौद्धिक अहिंसा।150 अनेकांत दृष्टि और अहिंसा में पूर्ण अभिन्नता है। इसीलिए अनेकांत को आधुनिक विचारक बौद्धिक अहिंसा कहते हैं। जैन दर्शन ने उसकी गहराइयों में जाने का प्रयत्न किया। बौद्धिक अहिंसा या अनेकांत नयी दिशा का उद्घाटन है। सर्वथा नवीन और मौलिक आयाम है। यह व्यावहारिक और तात्त्विक दोनों क्षेत्रों में आनेवाली समस्याओं का समाधान है। इस संबंध में आचार्य महाप्रज्ञ के विचार मौलिक एवं वैज्ञानिक हैं। डॉ. रामन्ना की अनेकांत संबंधी जिज्ञासा का समाधान करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया-जैसे आज विज्ञान में कण और प्रतिकण, मेटर और एण्टीमेटर, परमाणु और प्रति परमाणु का सिद्धांत है, एक दूसरे के अस्तित्व की सिद्धि के लिए प्रतिपक्ष को नियामक माना जाता है वैसे ही आचार्या ने 'यत् सत् तत् सप्रतिपक्ष' कहकर वस्तु के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए विरोधी धर्म की सत्ता को स्वीकार किया हैं। दो विरोधी धर्म साथ रह सकते हैं, यह एक सार्वभौम नियम है। इसके लिए दूसरा नियम है सापेक्षता का। विरोधी धर्म साथ में रहते हैं, इसीलिए कि उनमें सापेक्षता है। निरपेक्ष धर्म एक साथ रह ही नहीं सकते। इसी सापेक्षता के सिद्धांत पर अनेकांत का विकास हुआ है। अतः अनेकांत अभिनिवेश और आग्रह से मुक्त होने का प्रयोग कहा जा सकता है। इसके मूल सिद्धांत पाँच हैं 1. सप्रतिपक्ष 2. सह-अस्तित्व 3. स्वतंत्रता 4. सापेक्षता 5. समन्वय 152 अनेकांत के उपर्युक्त पाँच सिद्धांतों के सहारे अनेक सिद्धांत विकसित हो सकते हैं। इन्हीं के आधार पर अहिंसा और मैत्री के सिद्धांत का विकास हुआ। अहिंसा और मैत्री का सिद्धांत साहचर्य से आया। सब द्रव्य एक साथ रहते हैं कहीं कोई विरोध नहीं, टकराव नहीं। एक साथ में रहना और अपने-अपने अस्तित्व को स्वतंत्र बनाए रखना। महाप्रज्ञ कहते–'अहिंसा का यह अर्थ नहीं कि हम अपने अस्तित्व को समाप्त कर दें। अपना अस्तित्व स्वतंत्र रहे, एक साथ रहे। स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व दोनों का इतना सुन्दर प्रतिपादन हुआ है कि तुम स्वतंत्र भी हो और सह-अस्तित्व वाले भी हो।' इस प्रकार अनेकांत ने मानव के भीतर विराट् दृष्टि का सृजन किया है। इसे खुले दिमाग का सिद्धांत भी कहा जा सकता है। अनेकांत सिद्धांत का वैशिष्ट्य है कि उसने दर्शन के क्षेत्र में, दूसरे के विचारों को समझने की क्षमता प्रदान की। इसने किसी विषय में एकपक्षीय स्वरूप के दुराग्रह का विरोध किया जो सारे वैमनस्यों का मूल है। मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं कि 'खुला दिमाग' हमारे में उदारता तथा विचारों का संतुलन पैदा करता है। इस प्रकार अनेकांत तथा इसके उपसिद्धांत 'नयवाद' और स्याद्वाद' ने एक आवश्यक मूलाधार हमें दिया है, जो राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय तनावों को कम करने तथा 74 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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