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________________ भी अहिंसक बनाने का प्रयत्न किया। किसी भी बात पर यह मानकर अड़ जाना कि यही सत्य है, तथा बाकी लोग जो कुछ कहते हैं, वह सबका सब झूठ और निराधार है, विचारों की सबसे भयानक हिंसा है। मनुष्यों को इस हिंसा के पाप से बचाने के लिए ही जैन मुनियों ने अनेकांतवाद का सिद्धांत निकाला।147 गांधी ने इस सिद्धांत को मंथन पूर्वक अपनाया। अनेकांतवाद से परस्पर विरोधी बातों के बीच सामंजस्य स्थापित होता है तथा विरोधियों के प्रति भी आदर की वृद्धि होती है इसलिए यह सिद्धान्त गांधी को अत्यंत प्रिय था। उन्होंने लिखा है; मेरा अनुभव है कि अपनी दृष्टि से मैं सदा सत्य ही होता हूँ किंतु मेरे ईमानदार आलोचक तब भी मुझ में गलती देखते हैं। पहले मैं अपने को सही और उन्हें अज्ञानी मान लेता था। किन्तु, अब मैं मानता हूं कि अपनी-अपनी जगह हम दोनों ठीक हैं। कई अंधों ने हाथी को अलग-अलग टटोल कर उसका जो वर्णन दिया था, वह दृष्टांत अनेकांतवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसी सिद्धांत ने मुझे यह बतलाया कि मुसलमान की जांच मुस्लिम दृष्टिकोण से तथा ईसाई की परीक्षा ईसाई दृष्टिकोण से की जानी चाहिये। पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं। आज मैं विरोधियों को प्यार करता हूँ क्योंकि अब मैं अपने को विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूँ। मेरा अनेकांतवाद सत्य और अहिंसा, इन युगल सिद्धांतों का परिणाम है। 48 गांधी के विचारों में अनेकांत की स्वीकृति का स्पष्ट निदर्शन है। प्रतिपक्ष का मत भी ठीक हो, ये अनेकांतवादी का लक्षण हैं। गांधी पर ये सभी लक्षण घटित होते हैं क्योंकि उनकी अहिंसा कायिक और वाचिक होने के साथ-साथ बौद्धिक भी थी और इसी बौद्धिक अहिंसा ने उन्हें समझौतावादी और विरोधियों के प्रति दयालु बना दिया था। जब गांधी 'भारत छोड़ों' आंदोलन की योजना बना रहे थे, सुप्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने उनसे पूछा-'आपके इस कार्य से युद्ध में बाधा पड़ेगी और अमेरिकी जनता को आपका यह आंदोलन पसंद नहीं आयेगा। अजब नहीं कि लोग आपको मित्र-राष्ट्रों का शत्रु समझने लगें।' गांधी ने कहा, 'फिशर, तुम अपने राष्ट्रपति से कहो कि वे मुझे आंदोलन छेड़ने से रोक दें। मैं तो, मुख्यतः समझौतावादी मनुष्य हूँ, क्योंकि मुझे कभी भी यह नहीं लगता कि मैं ठीक पर ही हूं।'149 इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि गांधी ने अनेकांत को न केवल समझा ही बल्कि अपने जीवन की प्रयोगशाला में भी उतारा। जैनधर्म अहिंसा का पर्याय बना इसमें ‘अनेकांत दृष्टि' का बहुत बड़ा योगदान है। अहिंसा का विचार अनेक भूमिकाओं पर विकसित हुआ है। कायिक, वाचिक और मानसिक अहिंसा के बारे में अनेक धर्मों में विभिन्न धाराएं मिलती हैं, किन्तु बौद्धिक अहिंसा के क्षेत्र में भगवान महावीर से जो अनेकांत दृष्टि मिली, वही मुख्य कारण बना जैन धर्म के साथ अहिंसा का अविच्छिन्न संबंध स्वीकृति का। उन्होंने देखा कि हिंसा की जड़ विचारों की विप्रतिपत्ति है। जड़ पदार्थ में हिंसा-अहिंसा के भाव नहीं हो सकते। इनकी उद्भव-भूमि मानसिक चेतना है। उसकी भूमिकाएं अनंत हैं। प्रत्येक वस्तु के धर्म भी अनंत हैं। वस्तुतः वस्तु के अनंत धर्मों की सापेक्ष अभिव्यक्ति का उलझा प्रश्न वीतराग वाणी में समाहित हुआ। आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा-मनुष्य जो कुछ कहता है, उसमें वस्तु के किसी एक पहलू का निरूपण होता है। एक से अनेक के संबंध जुड़ते हैं, सत्य या असत्य के प्रश्न खड़े होने लगते हैं। बस यहीं से विचारों का स्रोत दो धाराओं में बह चलता है-अनेकांत या सत्-एकांत दृष्टि-अहिंसा, असत्-एकांत दष्टि-हिंसा। इसीलिए भगवान महावीर ने बताया प्रत्येक धर्म को अपेक्षा से ग्रहण करो। सत्य सापेक्ष अहिंसा एक : संदर्भ अनेक / 73
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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