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________________ प्रदूषण का खतरा मनुष्य के अपने असंयम के कारण पैदा हुआ है। असंयम की बढ़ती समस्या और गांधी के संयम का चित्रण करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा- 'आज प्रत्येक बात में असंयम है। विदेशी महिला बड़ी टहनी तोड़कर ले आई। महात्मा गांधी ने उसे डांटते हुए कहा- जो काम छोटी टहनी से हो सकता है उसके लिए बड़ी टहनी क्यों तोड़ी? यह अपव्यय है।' संयम के अभाव में पर्यावरण शुद्धि की कल्पना साकार नहीं हो सकती । प्रश्न है क्रियान्विति का? भगवान महावीर ने पर्यावरण का मात्र आधार ही नहीं दिया । उसकी क्रियान्विति का मार्ग सुझाते हुए कहा - 'जिन जीवों की हिंसा के बिना तुम्हारी जीवन यात्रा चल सकती है, उसकी हिंसा मत करो। जीवन-यात्रा के लिए जिनका उपभोग अनिवार्य है, उनकी भी अनावश्यक हिंसा मत करो। पदार्थ का भी अनावश्यक उपभोग मत करो।' +4 इस रूप में महावीर का संदेश पर्यावरण विशुद्धि हेतु आदर्श अभिलेख कहा जा सकता 1 आज के पर्यावरण-विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा कैसे की जाये ? हाल ही में पर्यावरण-विशेषज्ञों ने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया- 'आज वनस्पति की बीस हजार उपजातियां उपलब्ध हैं । यदि उनकी सुरक्षा नहीं की गई तो बहुत बड़ी निधियाँ समाप्त हो जाएंगी। 15 अपेक्षा है समय रहते मानव के भीतर पर्यावरण चेतना जागे । अहिंसा की चेतना जागे । अहिंसा के सिद्धांत की उपेक्षा कर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को समाहित नहीं किया जा सकता । अहिंसा का सिद्धांत केवल न मारने से ही नहीं जुड़ा है, निमित्तों से भी जुड़ा हुआ । महाप्रज्ञ के शब्दों में- 'यह निमित्त विज्ञान का अध्ययन ही पर्यावरण विज्ञान है। 146 पर्यावरण को समझना अहिंसा के विकास हेतु अनिवार्य है। दूसरी ओर अहिंसा को समग्रता से जानने के लिए पर्यावरणविज्ञान का अध्ययन जरूरी है। अहिंसा का अर्थ इतना ही नहीं है कि किसी जीव को मत मारो। उसका आशय है - मारने की स्थिति भी पैदा मत करो। अहिंसा और पर्यावरण- विज्ञान परस्पर इतने जुड़े हुए हैं कि एक के विकास हेतु दूसरे को अपनाना अनिवार्य है । दोनों महापुरुषों के पर्यावरण संबंधी विचार मौलिक एवं सामयिकता - सह अहिंसा विकास की भूमिका पर प्राणवान् साबित होते हैं। बौद्धिक अहिंसा बनाम : अनेकांत अनेकांत मात्र बौद्धिक व्यायाम नहीं जीवन का अखंड दर्शन है । इस दर्शन का स्रोत वीतराग चेतना है । भगवान् महावीर ने तत्त्व की स्थापना के लिए तर्क को एक सापेक्ष आलंबन के रूप में स्वीकृति प्रदान की है। अपने अभ्युपगम की स्थापना और परकीय अभ्युपगम के निरसन के लिए तर्क का उपयोग करना हो तो उस सीमा में ही किया जाए जहाँ अहिंसा बनी रहे । आचार्य महाप्रज्ञ ने बतलाया-‘अपने विचार की पृष्टि अहिंसा की पुष्टि के लिए है । अहिंसा का खण्डन कर दूसरे के अभ्युपगम का खंडन करना वास्तव में अपने अभ्युपगम का ही खण्डन हैं।' इस कथन के आलोक में अनेकांत के अहिंसात्मक स्वरूप को समझा जा सकता है। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो यह बहुत स्पष्ट होगा कि जीव-घात और मनोमालिन्य जैसे हिंसा है, उसी तरह एकांत दृष्टि अथवा मिथ्या आग्रह भी हिंसा का रूप है । साधु अहिंसा महाव्रत के धारक होते हैं अतः उनसे अखंड अहिंसा की अपेक्षा की जाती है। साधु समुदाय के बारे में अहिंसा संबंधी गांधी टिप्पणी को रामधारी सिंह दिनकर ने उद्धृत करते हुए लिखा- 'भारत में अहिंसा के सबसे बड़े प्रयोक्ता जैन मुनि हुए हैं, जिन्होंने मनुष्य को केवल वाणी और कर्म से ही नहीं प्रत्युत विचारों से 72 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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