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________________ व्यक्ति में बौद्धिक ईमानदारी की भावना का विकास करने में समर्थ होगा। अतः दृष्टिकोण को आलोकित करने वाले 'अनेकांत' को व्यापक बनाया जाये तो स्थूल तथा सूक्ष्म रूपों में प्रवृत्त बर्बरता, शोषण, उद्दण्डता तथा शीतयुद्ध समाप्त सकते हैं। अनेकांत दर्शन का वैशिष्ट्य इस बात में है कि वह मनुष्य को दुराग्रही बनने से बचाता है। इसका संदेश है कि तुम्हीं ठीक हो ऐसी बात नहीं, शायद सामने वाला व्यक्ति भी सत्य ही कह रहा है, भले वह विरोधी भी क्यों न कहे । भाषा की दृष्टि से अनेकांतवादी व्यक्ति स्याद्वादी होता है । चूँकि उसका भाषा प्रयोग 'यही सत्य है' न होकर, 'शायद यह सत्य हो' की तर्ज पर होता है। स्याद्वाद अहिंसा का एक अंग है। जैन दर्शन में द्रव्य हिंसा की अपेक्षा भावहिंसा को भी बंध का कारण माना है। अर्थात् किसी प्राणी को ऐसा वचन न कहा जाए जिससे कि उसे दुःख पहुँचे । स्याद्वाद बौद्धिक अहिंसा है । वास्तव में धर्म नाम पर होने वाले सांप्रदायिक संघर्षों का मूल कारण एकांतवाद का आग्रह है । स्याद्वाद में विश्व शांति की क्षमता का जिक्र करते हुए भारतीय संस्कृति के विशेषज्ञ मनीषी डॉ. रामधारीसिंह दिनकर ने लिखा- ' स्याद्वाद का अनुसंधान भारत की अहिंसा साधना का चरम उत्कर्ष है और सारा संसार इसे जितना शीघ्र अपनाएगा, विश्व में शांति उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी ।' विविधता में एकता और एकता में विविधता का समाहार स्याद्वाद का वचन विषयक मौलिक आश्रयण है। जैन दर्शन ने विश्व को यह नवीन दृष्टि प्रदान की। वर्तमान के संघर्ष संकुल युग में स्याद्वाद जैसा सिद्धांत ही सत्य और अहिंसा के बल पर समस्त प्राणियों में मेल-मिलाप करने की क्षमता रखता है । परम सत्य पर पहुँचा प्रबुद्ध चेता मिथ्या अभिमान या दावा न करे । महाप्रज्ञ के शब्दों में अधिकांशतया भेदभाव, मनोमालिन्य और साम्प्रदायिक अभिनिवेश बढ़ते हैं, वे शब्दों की पकड़ के कारण ही बढ़ते हैं। विवेक की सफलता इसी में है कि बौद्धिक अहिंसा अधिक से अधिक विकासशील बनें। इसके विकास की प्रमुख बाधाएँ राग-द्वेष हैं। जब तक इनकी प्रधानता रहती है मानसिक अहिंसा का समाचरण भी नहीं होता है, तब बौद्धिक अहिंसा का विकास कैसे हो सकता है? जैसे-जैसे रागद्वेष क्षीण होता है, वैसे-वैसे अनेकांत दृष्टि विकसित होती है, जैसे-जैसे अनेकांतदृष्टि विकसित होती है वैसे-वैसे राग-द्वेष क्षीण होता है । ये दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। विमर्शतः अहिंसा के उच्च शिखर से अनेकांत दर्शन का उद्भव हुआ है । वैचारिक सहिष्णुता पर इसका विकास और व्यवहार के धरातल पर प्रतिष्ठा मिली। भारतीय साधकों की अहिंसा भावना स्याद्वाद के रूप में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंची, क्योंकि यह दर्शन मनुष्य के भीतर बौद्धिक अहिंसा को प्रतिष्ठित करता है। संसार में जो अनेक मतवाद फँसांद हैं, उनके भीतर सामंजस्य को जन्म देता है । साथ ही वैचारिक भूमि पर पलने वाली कटुता का निरसन कर स्वस्थ मानसिकता को उत्पन्न करता है। अतः अहिंसा के विकास में अनेकांत की अनन्य भूमिका है और रहेगी । अहिंसा का व्यवहार पक्ष अहिंसा एक सुगम शब्द है, जिसकी अर्थात्मा अनेक दुर्गम घाटियों को फाँदती हुई अविरल गति से आगे बढ़ती है। इसकी ऐसी खासियत है कि, जिस कोण से देखो उसी यह बखूबी नजर आने लगती है । अहिंसा का विचार आधार से आरंभ होता है और फलितार्थ पर्यंत व्यापृत होता जाता अहिंसा एक संदर्भ अनेक / 75
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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