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________________ अहिंसा एक : संदर्भ अनेक अहिंसा विराट् स्वरूपा है। इसका अस्तित्व अनेक रूपों में विभिन्न संदर्भो में विद्यमान है। शब्द से मात्र 'न+हिंसा-अहिंसा' अति सुगम प्रतीत होता है। पर, इसका वाच्यार्थ बहुत व्यापक है। अहिंसा की अवधारणा में इसके विविध आयाम समाये हुये हैं। प्रस्तुत संदर्भ में मौलिक बिन्दुओं का विमर्श अभीष्ट है। अहिंसा और दया आगमों में अहिंसा के लिए अथवा इसके पर्यायवाची के तौर पर 'दया' शब्द का प्रयोग किया गया है। अहिंसा और दया दोनों एक हैं। शब्द उत्पत्ति की दृष्टि से दोनों में भेद जान पड़ता है। अर्थ की दृष्टि से पाप से बचने या बचाने की जो वृत्ति है, वही अहिंसा है और वही दया है। यदि इनको पृथक् करना चाहें तो 'निवृत्यात्मक अहिंसा' को अहिंसा एवं सत्प्रवृत्यात्मक अहिंसा को दया कह सकते हैं। टीकाकार मलयगिरि ने दया का अर्थ-'दया-देहि-रक्षा' देहधारी जीवों की रक्षा करना किया है। यह उचित भी है क्योंकि अहिंसा (प्राणातिपात्-विरमण) में जीव-रक्षा अपने आप होती है। आचार्य भिक्षु ने लिखा-'तीन करण, तीन योग से षट्कायिक जीवों को मारने का शुद्ध मन से त्याग करना, यही पूर्ण दया भगवान् ने कही है, इससे पाप-आगमन के द्वार रुकते हैं। 100 यह अहिंसा का विशुद्ध स्वरूप है। अहिंसा और दया का अंतर संबंध है, एक के बिना दूसरी अपूर्ण है। प्राणी मात्र के प्रति जो संयम है, वह अहिंसा है। प्राणिमात्र के प्रति जो मैत्रीभाव है, उन्हें पीड़ित करने का प्रसंग आते ही हृदय में एक कंपन होता है, वह दया है। दया के बिना अहिंसा टिक नहीं सकती और अहिंसा के बिना दया हो नहीं सकती। इन दोनों में अविनाभाव संबंध है। धर्म का मूल अहिंसा है क्योंकि वह दयामय-प्रवृत्तिरूप होता है। यह अहिंसा और दया की अभिन्नता का दिग्दर्शन है। दोनों का संबंध एक ही बिन्दु से जुड़ा हुआ है, वह लक्ष्य है-वृत्ति परिवर्तन। 'अहिंसा और दया का संबंध वृत्ति परिवर्तन से है।' हिंसामयी आंतरिक वृत्ति का परिवर्तन दोनों का समान लक्ष्य है। करुणा और दयाद्र मानस ही अहिंसा की अनुपालना में सफल बनता है। 'अहिंसा का पालन वही कर सकता है, जिसका मन दया से भीगा हुआ हो। पर साधन की विकृति से दया भी विकृत बन जाती है। एक आदमी मूली खा रहा है। दूसरे के मन में मूली के जीवों के प्रति दया उत्पन्न हुई। उसने बल प्रयोग किया और जो मूली खा रहा था उसके हाथ से वह छीन ली। दया का यह शुद्ध साधन नहीं है। 101 स्पष्ट रूप से हिंसक वही होता है जो हिंसा करे, जिसके मन में हिंसा का अहिंसा एक : संदर्भ अनेक / 55
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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