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________________ _ 'सर्वथा' का अर्थ सब प्रकार से अहिंसा का पालन करना यानी मन, वचन, कर्म-सभी प्रकार से दूसरों की हिंसा नहीं करना। इसका अभिप्राय है जीवन के सभी पहलुओं-व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, आर्थिक, शैक्षणिक इत्यादि संदर्भो में अहिंसा का पालन किया जाय। ___ 'सर्वदा' काल सूचक पद है। इसका अभिप्राय है अहिंसा का पालन बिना किसी अपवाद के सदैव वांछनीय है। योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने अहिंसा के क्रियात्मक स्वरूप पर प्रकाश डाला- 'अहिंसा प्रतिष्ठित व्यक्ति की सन्निधि में सब प्राणी वैरविहीन बन जाते हैं।' +7 यह अहिंसा का ही माहात्म्य है कि इसको धारण करने वाले व्यक्ति, महापुरुष का आभामंडल इतना पवित्र एवं मैत्री की तरंगों से आप्लावित हो जाता है कि उसके प्रभाव क्षेत्र में बैठने वाले जन्मजात वैरी भी निर्वेर बन जाते . हैं। इसका आगमिक उदाहरण है-भगवान् महावीर की देशना सुनने सभी हिंसक-अहिंसक सिंह और बकरी आदि का एक साथ बैठना। अहिंसा का स्वरूप विभिन्न रूपों में मिलता है। योग दृष्टि समुच्चय में मित्रा दृष्टि के अन्तर्गत यम का उल्लेख किया गया है जिसमें हिंसा-अहिंसा का तात्त्विक स्वरूप समझने के लिए उसके तीन प्रकार बतलाये गये-'हेतु अहिंसा, स्वरूप अहिंसा, अनुबंध अहिंसा। . हेतु अहिंसा-जीव की यतना एवं जयणा करना, बचाने की ताकत रखना। . स्वरूप अहिंसा-जीव की घात न करना, प्राणों का हरण न करना। . अनुबंध अहिंसा-जो अहिंसा फल रूप में परिणत होती है वह अनुबंध अहिंसा है। इसी से अहिंसा की पंरपरा चलती है। पातंजल योग सूत्र के भाष्यकार की दृष्टि में अहिंसक और दयालु में कोई भेद नहीं है- 'जो अहिंसक है, वही दयालु है और जो दयालु है वही अहिंसक है। अहिंसात्मक दया का ही भगवत-प्राप्ति रूप फल होता है।' आशय रूप में अहिंसा का पूर्ण पालन स्वरूप प्राप्ति, आत्म दर्शन का कारक होता है। ___ योग दर्शन में अहिंसा के विकासात्मक स्वरूप का विस्तृत विवेचन नहीं मिलता। उसमें दःखों की परंपरा के अंत हेतु पंच क्लेश पर विजय प्राप्ति का उल्लेख नितांत अहिंसात्मक है। अहिंसा की उत्कृष्ट साधना के बिना क्लेश मुक्ति संभव नहीं है। यद्यपि भाष्यकार ने अहिंसा का प्रत्यक्ष रूप से कोई उल्लेख नहीं किया पर इसका भावार्थ यही ज्ञापित करता है। विभिन्न दर्शनों में अहिंसा के स्वरूप पर अपना अभिमत प्रकट करते हुए कोशकार श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वर ने कहा- 'अहिंसा का स्वरूप अन्य दर्शनों में वैसा नहीं जैसा जैन दर्शन में है। सांख्य दर्शन में अहिंसा मोक्ष प्राप्ति का प्रधान अंग रही है फिर भी पँच यमों के रूप में अहिंसा को स्वीकारा है। शाक्य दर्शन में दस कुशल धर्म में अहिंसा का प्रतिपादन किया गया है। वैशेषिक एवं वैदिक धर्म में अहिंसा का सूक्ष्म स्वरूप नहीं मिलता।' इसके आधार पर विभिन्न धर्मों में अहिंसा के स्वरूप को जान सकते हैं। विभिन्न दर्शनों में अहिंसा का जो स्वरूप है वह अपने आप में मौलिक है। दार्शनिकों की अहिंसा संबंधी सोच विराट् है। विराट्ता का हेतु है-प्राणी जगत् के प्रति करुणा, मैत्री और आत्मौपम्य का बोध। अतः अहिंसा के प्रतिपादन की शैली भिन्न-भिन्न होने पर भी मूल तत्त्व 'न मारना' सभी को इष्ट है। विमर्शतः सभी आस्तिक दर्शनों ने अहिंसा को साधना, सोच एवं आचरण पक्ष में स्थान देकर इसके विकासात्मक स्वरूप को प्रशस्त किया है। 54 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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